हाईकोर्ट जज के खिलाफ फेसबुक पर पोस्ट करने वाले अधिवक्ता को हाईकोर्ट ने सुनाई एक माह जेल की सजा एवं फेसबुक एकाउंट हटाने का दिया आदेश

फेसबुक पर हाईकोर्ट जजों के खिलाफ घृणायुक्त पोस्ट लिखना पड़ा मंहगा, वकील को एक महीने की कैद की सजा सुनाई, उसका फेसबुक खाता हटाया ।
हिमाचल प्रदेश ।शिमला ।हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट । Law Expert and Judiciary Exam.
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक जजों के खिलाफ फेसबुक पर घृणात्मक पोस्ट लिखने वाले वकील को दंड के रूप में एक महीने के लिए जेल भेज दिया है और उसके फेसबुक खाते को बंद करने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति चंदर भूषण बरोवालिया ने विकास सनोरिया के फेसबुक खाते को डिलीट करने का आदेश दिया और कहा कि जजों को भला बुरा कहने की इस बढ़ती धारणा से कठोरता से निपटने की जरूरत है। हाईकोर्ट ने इस बारे में स्वतः संज्ञान लेते हुए विकास सनोरिया के खिलाफ आपराधिक अपमान का मामला दर्ज किया था क्योंकि उसने एक न्यायिक मजिस्ट्रेट के खिलाफ कुछ अभद्र टिप्पणी की थी। इसके बाद भी यह वकील टिप्पणियाँ लिखता रहा जिसमें कुछ तो गाली गलौज से भरे थे और हाईकोर्ट के जजों को निशाना बनाया गया था। यह सब उसने तब करना शुरू किया जब मजिस्ट्रेट ने उसकी एक अर्जी खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता को लाइसेंस समझकर मनमाने ढंग से निष्पक्ष रूप से फैसला देने वाले जजों के खिलाफ इसका प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। जजों की आलोचना मर्यादापूर्ण होनी चाहिए और इसमें कहीं से भी द्वेष नहीं होना चाहिए। “किसी भी वकील को अदालत को धमकाने या पीठासीन अधिकारी पर कीचड़ उछालने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। अगर इस तरह के मामलों को बर्दाश्त कर लिया गया तो जज अपना कर्त्तव्य स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर पूरा नहीं कर सकते और इसका सर्वाधिक असर क़ानून के शासन पर पड़ेगा…वकीलों को जजों को आतंकित करने की इजाजत नहीं दी जा सकती…यह आधारभूत और मौलिक है और कोई भी सभ्य प्रशासनिक व्यवस्था इसकी इजाजत नहीं दे सकती है,” पीठ ने कहा। पीठ ने इस बारे में किसी भी तरह की क्षमा याचना को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा : क्षमा याचना पश्चाताप है। जब तक क्षमा विनीत भाव से नहीं माँगा जाए तब तक यह पछतावे से रहित होता है और यह अस्वीकार्य है। यह क्षमा याचना तब की जा रही है जब अपमानकर्ता को लगा है कि कोर्ट अब उसके खिलाफ कार्रवाई करेगी…क्षमा याचना कोई बचाव का हथियार तो नहीं है…न ही यह सार्वभौमिक उपचार है, पर उम्मीद की जाती है कि यह वास्तविक पश्चाताप का साक्ष्य हो।” कोर्ट ने इस वकील को एक महीने की जेल की सजा देने के साथ ही उस पर 10 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया और रजिस्ट्री को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि इस व्यक्ति का फेसबुक खाता डिलीट कर दिया जाए।by Law Expert and Judiciary Exam.

टिप्पणियाँ

  1. आरोपी वकील ने क्या शब्द इस्तेमाल किये ये पोस्ट में नही लिखा है।अतः सटीक टिप्पणी सम्भव नहीं है।किंतु सिक्के के दूसरे और महत्वपूर्ण पहलू के बारे में इतना अवश्य कहूंगा कि ठीक है वकील अनुशासित होकर कार्य करें,लेकिन जब जज ही अनुशासनहीन मनमाने गुणवत्ता रहित ढंग से कार्य करें और वकील व क्लाइंट को अपमानित करके कीचड़ उछाले।तब आचरण नियमों विरुद्ध ऐसे कार्य की विधिवत शिकायत करने पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की निंदनीय उपेक्षा व निष्क्रियता का क्या?मैंने स्वयं फरवरी 2017 में नोएडा गौतमबुद्ध नगर के तत्कालीन जिला जज की शिकायत 324 पेजों में इलाहाबाद हाईकोर्ट भेजी ,उसके निस्तारण नहीं होने बावजूद उसका हाई कोर्ट एलिवेशन किया गया।9 माह बाद आरटीआई लगाई तो हाइकोर्ट से जवाब आया कि आपकी शिकायत प्रक्रिया अधीन है।दुस्सन्धी की बू आई तो पता चला कि हाई कोर्ट रजिस्ट्रार जनरल आरोपी जिला जज का मित्र व एक ही 1985 के मुंसिफ बैच के लोग है और रजिस्ट्रार भी हाई कोर्ट जज बन गया है।मेने तब सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को शपथ पत्र सहित लिखा कि शिकायत को अपने पास मंगाकर आप ही निष्पक्ष न्यायोचित निस्तारण कीजिये।उन्होंने महज इतना किया है कि उसे स्थाई नही कर रहे है।लेकिन वहां भी घटिया व निंदनीय खेल ये पता लगा है कि रिटायर मेन्ट डेट नजदीक होने पर वे जज को स्थायी कर रहे हैं ताकि उसे सर्विस बेनेफिट्स मिल सकें। जब दोषी वकील को सजा में देरी नहीं तो अधिक संगीन आरोपी जज को छूट क्यों और किस आधार पर दी जाती है।रिमाइंडर भेजने पर भी, हाल में सीजेआई खिलाफ मीडिया में आने वाले चारों जजो सहित सीजेआई भी कोई जवाब नहीं दे रहे हैं।आरटीआई आवेदन जवाब रजिस्ट्रार सुप्रीम कोर्ट ने दिया कि लंबित अभ्यावेदन का जवाब देना न्यायालय अवमानना होगी।ये स्तर है वहाँ भी दर्ज शिकायत का,यही सच्चाई है।न्यायिक अधिकारी भी कोई देवता या विशिष्ट व्यक्ति नही होकर मात्र लोकसेवक व सामान्य व्यक्ति ही है जो कि आचरण नियमों से बंधे होने बावजूद प्रायः उन्हें नही मानकर उल्लंघन करते रहते हैं। क्रिया की प्रतिक्रिया होती ही है, यही प्रकृति का नियम है।गलत घमंडी व मूलतः अयोग्य लोगों का चयन जब न्यायिक अधिकारी जैसे दायित्वपूर्ण पदों पर होगा और वे मनमानी करेंगे तो नतीजे भी नकारात्मक ही निकलेंगे।मैंने ऐसा अभ्यावेदन 2014 में यूपी सिविल जज एग्जाम में इंटरव्यू देने के बाद ,सभी संबंधित प्राधिकारियों को ईमेल मार्फ़त भेजा था किंतु कोई जवाब नहीं दिया गया।भारत,वीरो की भूमि है।

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