सुप्रीम कोर्ट ने वर्तमान सिविल जजों को उच्चतर न्यायिक सेवा के माध्यम से जिला जज के रूप में नियुक्ति की अनुमति दी

सुप्रीम कोर्ट ने वर्तमान सिविल जजों को उच्चतर न्यायिक सेवा के माध्यम से जिला जज के रूप में नियुक्ति की अंतरिम अनुमति दी 
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जिला जजों के पद पर नियुक्ति चाहने वाले न्यायिक अधिकारियों को सीधी नियुक्ति द्वारा जिला जज के रूप में नियुक्ति किये जाने की अंतरिम अनुमति दे दी है।

         28 July 2018. Law Expert and Judiciary Exam.

न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ और न्यायमूर्ति एसके कौल की पीठ ने दिल्ली और इलाहाबाद हाईकोर्टों को अपने निर्देश में कहा कि वे याचिकाकर्ताओं के चयन की प्रक्रिया में आगे बढ़ सकते हैं और इनको जिला जज के रूप में नियुक्त कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि इसके लिए इन लोगों को अधीनस्थ न्यायिक सेवा से इस्तीफा देने की जरूरत नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उनकी नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में लंबित याचिका के निपटारे पर आने वाले अंतिम फैसले पर निर्भर करेगा ।
 इस मामले में मुख्य बात यह है कि क्या न्यायिक अधिकारियों को सीधे जिला जजों के रूप में नियुक्ति की जा सकती है या नहीं क्योंकि ये लोग अपनी सेवा के सात साल पूरे कर चुके हैं। इस तरह यह मामला अनुच्छेद 233(2) की व्याख्या का है कि क्या जो लोग पहले से ही न्यायिक सेवा में हैं, क्या उनको प्रोन्नति नहीं देकर जिला जजों के पद पर सीधी नियुक्ति दी जा सकती है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट का मंगलवार का यह आदेश तब पास किया गया जब पीठ ने यह पाया कि इसी तरह का एक आदेश पहले न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर और एसके कॉल की पीठ 10 मई को पास कर चुका है। 

इस पीठ ने कहा था : “…हाईकोर्ट याचिकाकर्ता नंबर दो को उच्चतर न्यायिक सेवा में नियुक्त कर सकता है और इसके लिए उसे अधीनस्थ न्यायिक सेवा से हटने की जरूरत नहीं है पर यह संविधान पीठ के फैसले से सशर्त बंधा होगा।” मंगलवार को पीठ ने जो आदेश दिया वह भी इसी पर आधारित था। जिला जजों की सीधी नियुक्ति पर तत्काल गौर करने की जरूरत : सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ और एमएम शांतानागौदर की पीठ ने इस वर्ष जनवरी में मामले को एक बड़े पीठ को सौंपने के बारे में मुख्य न्यायाधीश का निर्देश चाहा था ताकि अनुच्छेद 233 की व्याख्या की जा सके। पीठ ने इस मामले को बड़ी पीठ को सौंपने का निर्देश इसलिए माँगा था क्योंकि इस मामले के बारे में विभिन्न मामलों में अलग-अलग तरह के विचार व्यक्त किये गए थे। जैसे सत्य नारायण सिंह बनाम इलाहाबाद हाईकोर्ट जुडिकेचर, दीपक अग्रवाल बनाम केशव कौशिक और विजय कुमार मिश्रा बनाम पटना हाईकोर्ट।

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