अगर सरकार ने किसी निर्दोष व्यक्ति को झूठे केस में फंसाया है तो उसे देना होगा मुआवजा : हाईकोर्ट

अगर राज्य सरकार ने किसी निर्दोष व्यक्ति को झूठे मुकदमे में फंसाया है तो उसे मुआवजा मिलना चाहिए : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
 “किसी निर्दोष को झूठे मामले में फंसाने के एक वाकये से क़ानून के शासन को एक व्यक्ति का समर्थन खोना पड़ता है और वह एक विद्रोही पैदा करता है जो क़ानून खिलाफ जाने को तैयार रहता है। 

10 July 2018 .  Madhya Pradesh. High Court .
By Law Expert and Judiciary Exam .

ख़राब जांच और गलत अभियोजन अंततः इसके कारण बनते हैं”। अगवा करने के मामले में एक व्यक्ति को झूठा फंसाने के लिए राज्य को मुआवजे का निर्देश देते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर खराब जांच और अभियोजन के कारण निर्दोष आरोपी को परेशानी झेलनी पड़ती है तो जीवन के अधिकार के तहत उसे राज्य से मुआवजा पाने का हक़ है।

न्यायमूर्ति एसए धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति आनंद पाठक ने उन दोनों व्यक्तियों की याचिका स्वीकार कर ली जिन्हें निचली अदालत ने आईपीसी की धारा 364 के तहत और मध्य प्रदेश डकैती विप्रन प्रभावित क्षेत्र अधिनियम की धारा 11/13 के तहत दोषी मानते हुए सजा दी है। 
 निचली अदालत ने इन अभियुक्तों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई है। आरोपियों को बरी करते हुए कोर्ट ने कहा कि झूठे इल्जाम में फंसाने का यह मामला है। “या तो शिकायत दायर करने वाला व्यक्ति और जिसको सजा दी गई है वे सच से अवगत नहीं थे या अभियोजन अपना कर्तव्य ठीक तरीके से नहीं निभा पाया और अपनी कमियों को छिपाने के लिए वर्तमान अपीलकर्ता को झूठा फंसा दिया जो कि पहले ही किसी अन्य मामले में जेल में बंद था जो कि न्याय का मजाक उड़ाना है,” पीठ ने कहा।
पीठ न कहा कि इन लोगों के जीवनके बहुमूल्य 12 साल झूठ की भेंट चढ़ गई क्योंकि जांच में दोष था और सुनवाई बहुत ही असावधानी पूर्वक की गई।  कोर्ट ने कहा, “अगर ये याचिकाकर्ता अपने अब तक कि इस अवधि की यात्रा की ओर पीछे मुड़कर देखते हैं तो उनको बहुत की कष्टप्रद यादों से भरा इसे पाते हैं…” पीठ ने यह भी कहा कि न्यासंविधान नागरिकों को न्याय दिलाने को प्राथमिकता देता है और यह मौलिक अधिकार का हिस्सा है।
और इसलिए यह राज्य का कर्तव्य है कि खराब जांच और कलुषित अभियोजन के लिए राज्य उसको उचित मुआवजा दे। बरी किए गए अभियुक्तों को एक-एक लाख का मुआवजा देने का आदेश देते हुए कोर्ट ने कहा, “समय आ गया है जब क़ानून के शासन को सड़क, जल, बिजली आदि मामलों में शामिल किया जाए नहीं तो बुनियादी सुविधाओं के इन क्षेत्रों का विकास कुप्रशासन और अराजकता की भेंट चढ़ जाएगा। 
 क़ानून का शासन और अराजकता के बीच की खाई को पाटना समय की मांग है। राज्य सरकार का क़ानून विभाग, गृह विभाग और अभियोजन विभाग  से उम्मीद की जाती है कि वे जांच के लिए वैज्ञानिक और व्यवस्थित तरीका अपनाए जाने की व्यवस्था करेंगे ताकि नागरिकों को न्याय मिल सके…” कोर्ट ने यह भी कहा कि यद्यपि सीआरपीसी में किसी आरोपी को मुआवजा देने का कोई प्रावधान नहीं है, पर राज्य अपनी संवैधानिक दायित्वों से भाग नहीं सकता। न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल और न्यायमूर्ति जीएस अहलुवालिया की पीठ ने भी लगभग 10 साल तक जेल में गुजारने वाले आरोपी को बरी करते हुए इसी तरह के आदेश दिए थे।

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