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कोई आदेश कितना भी गलत क्यों न हो उसे CrPC की धारा 362 के तहत वापस नहीं लिया जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कोई आदेश कितना भी गलत क्यों न हो, उसे सीआरपीसी की धारा 362 के तहत वापस नहीं लिया जा सकता । “कोई आदेश कितना भी गलत क्यों न हो, उसे ज्ञात क़ानून के तहत ही ठीक किया जा सकता है, सीआरपीसी की धारा 362 के तहत नहीं” सुप्रीम कोर्ट. सुप्रीम कोर्ट  ने मुहम्मद ज़ाकिर बनाम शबाना मामले में कहा है कि कोई हाईकोर्ट अपने किसी पूर्व आदेश को बहुत ही गलत बाताते हुए सीआरपीसी की धारा 362 के तहत वापस नहीं ले सकता। न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ कर्नाटक हाईकोर्ट के एक “वापसी” आदेश के खिलाफ दायर आपराधिक याचिका की सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। हाईकोर्ट ने एक मामले में 10 दिन पहले दिए अपने आदेश को वापस लेते हुए कहा था, “सीआरपीसी की धारा 362 जो कहे,इससे पहले इस अदालत ने 18 अप्रैल 2017 को जो आदेश दिया था वह बहुत ही गलत था इसलिए यह आदेश वापस लिया जाता है। इस याचिका को दुबारा दायर करने का आदेश दिया जाता है और रजिस्ट्री को आदेश दिया जाता है कि वह पहले दिए गए आदेश को अपलोड नहीं करे और इस बात को गौर करे कि यह आदेश अब वापस ले लिया गया है।” हाईकोर्ट ने जो पहले आदेश दिया

खतना संवैधानिक अधिकारों का हनन, महिला केवल शादी के लिए नहीं : सुप्रीम कोर्ट

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 खतना संवैधानिक अधिकारों का हनन है, महिला केवल शादी के लिए नहीं है : सुप्रीम कोर्ट .  खतने पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल, कहा- महिला से पति की पसंद बनने की अपेक्षा क्यों ?  सुप्रीम कोर्ट ने खतना प्रथा को भारत में पूरी तरह से बंद करने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि यह लैंगिक संवेदनशीलता का मामला है और स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है।...  दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने दाऊदी बोहरा मुसलमानों में प्रचलित महिलाओं के खतना प्रथा पर सवाल उठाते हुए कहा कि महिला से ही पति की पसंद बनने की अपेक्षा क्यों होनी चाहिए क्या वह कोई पशु है जो किसी की पसंद न पसंद बने। कोर्ट ने कहा कि ये मामला महिला की निजता और गरिमा से जुड़ा है ये संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है। इसके अलावा सोमवार को केन्द्र सरकार ने भी इस प्रथा को बंद करने की मांग का समर्थन किया। मामले पर मंगलवार को भी सुनवाई होगी।  सुप्रीम कोर्ट में कई जनहित याचिकाएं लंबित हैं जिनमें महिलाओं के खतना प्रथा पर रोक लगाने की मांग की गई है। मामले पर मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, एएम खानविल्कर व डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ सुनवाई कर रही है। सोमवार को सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट का आदेश, ट्रायल में न लगे 6 महीने से ज्यादा का समय

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सुप्रीम कोर्ट का आदेश ,ट्रायल में न लगे 6 महीने से ज्यादा का समय  सुप्रीम कोर्ट का आदेश, ट्रायल में न लगे 6 महीने से ज्यादा का समय नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट.  तेजी से न्याय सुनिश्चित करने और आरोपियों द्वारा मुकदमे को लंबा खींचने के मामले को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत ने बड़ा बयान दिया है। कोर्ट ने ऐसे में मामलों में खास तौर पर भ्रष्टाचार और आपराधिक मामलों का जिक्र किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों का ट्रायल 6 महीने से ज्यादा नहीं होना चाहिए।6 महीने से ज्यादा पेंडिंग केस अगले 3 महीने में निपटाना होगा । जस्टिस नरीमन और नवीन सिन्हा एवं अन्य की बेंच ने कहा कि यह सुनिश्चित करना समाज के भले में है कि भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों की जांच तेजी से की जाए। कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टचार का कैंसर सिस्टम के दूसरे हिस्सों को न खा जाए। बेंच ने कहा, 'यह बात साफ तौर पर स्वीकार की जाती है कि क्रिमिनल मामलों के ट्रायल में देरी, खास तौर पर प्रिवेंशन ऑफ करप्शन ऐक्ट में, न्याय की प्रक्रिया को प्रभावित करता है, जबकि इसमें ही समाज का गहरा हित है। ट्रायल में देरी होना लोगों के कानून के प्रति विश्वास

गुजारा भत्ता देने वाले पिता को बेटी से मिलने का भी हक : दिल्‍ली हाईकोर्ट

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गुजाराभत्ता देने वाले पिता को बेटी से मिलने का भी हक : दिल्‍ली हाईकोर्ट पिता बेटी को जन्मदिन, नियमित अंतराल पर देखने का हक रखता है : दिल्‍ली हाईकोर्ट .अदालत ने दिल्ली के एक व्यक्ति की याचिका को निपटाते हुए यह फैसला सुनाया.  नई दिल्‍ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज एक व्यक्ति को स्कूल में उसकी बेटी से मिलने की अनुमति देते हुए कहा कि एक पिता जो अपनी बेटी के लिए गुजाराभत्ता देने को तैयार और इसका इच्छुक है, वह नियमित अंतराल पर या कम से कम उसके जन्मदिन पर उससे मिलने का हकदार भी है. अदालत ने उस व्यक्ति को अपनी बेटी से महाराष्ट्र के लोनावाला में उसके जन्मदिन, त्यौहारों या तीन महीने में एक बार मिलने की अनुमति दी, जिसने दावा किया था कि वह बीते तीन वर्ष से अपनी 12 वर्षीय बेटी से नहीं मिला है. न्यायमूर्ति प्रदीप नंद्राजोग और न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी की पीठ ने अपने फैसले में कहा, 'वैसे यह याचिका पक्षों के मिलने के अधिकार से संबंधित नहीं है, एक पिता जो अपनी बेटी के लिए गुजाराभत्ता देने के लिए तैयार और इच्छुक है, वह अपनी बेटी को कम से कम त्यौहारों, उसके जन्मदिन या नियमित अंतराल पर देखने का भ

बेवफाई के आधार पर तलाक दी गई महिला को नहीं मिलेगा गुजारा भत्ता : मद्रास हाईकोर्ट

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'बेवफाई के आधार पर तलाक दी गई महिला को नहीं मिलेगा गुजारा भत्ता' : मद्रास हाईकोर्ट  मदुरै: तलाक के एक केस में सुनवाई करते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि जिस महिला को बेवफाई के आधार पर तलाक दिया गया हो, वह अपने पूर्व पति से गुजारा-भत्ता का दावा नहीं कर सकती।  न्यायमूर्ति एस नागमुथु ने कहा कि यदि तलाकशुदा महिला ने अपने पति से बेवफाई की है तो उसे गुजारा भत्ता पाने का कोई हक नहीं होगा। उन्होंने अपने आदेश में कहा कि ऐसी पत्नी अपने अलग हो चुके पति से गुजारा भत्ता का दावा नहीं कर सकती और यही कानून तलाकशुदा के मामले में भी लागू होगा। न्यायाधीश ने कहा, 'व्याभिचार वाले आचरण के आधार पर तलाक दी गई पत्नी भी अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता की हकदार नहीं होगी। ' न्यायाधीश ने एक सरकारी कर्मचारी द्वारा दायर एक याचिका को स्वीकार करते हुए यह निर्देश दिया जिन्होंने रामनाथपुरम प्रधान जिला एवं सत्र अदालत के आदेश को चुनौती दी थी। वैसे निचली अदालत ने उन्हें अपनी पूर्व पत्नी को गुजारा भत्ता के रूप में 1,000 रुपया प्रति महीना देने का निर्देश दिया था, जिसे उन्होंने 2011 में व्यभिचार क

पति की कमायी पर ही आश्रित नहीं रहा जा सकता है : कोर्ट

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पति की कमायी पर ही आश्रित नहीं रहा जा सकता : अदालत ने महिला से कहा नई दिल्ली: सत्र न्यायालय. Law Expert and Judiciary Exam.  दिल्ली की एक अदालत ने घरेलू हिंसा के एक मामले में महिला के मासिक अंतरिम गुजारा भत्ते में इजाफा करने से यह कहकर इनकार कर दिया है कि यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह घर पर ही बेकार बैठी रहे और अपने पति की कमायी पर ही आश्रित रहे क्योंकि वह अपने पति से कहीं अधिक पढ़ी लिखी है. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश आर के त्रिपाठी ने महिला को मिलने वाले 5,500 रुपये के मासिक अंतरिम भत्ते में इजाफा कर उसे 25,000 रुपये करने की मांग वाली उसकी याचिका खारिज कर दी और यह भी कहा कि वह अलग हो चुके अपने पति से कहीं अधिक पढ़ी लिखी है. न्यायाधीश ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता खुद एक शिक्षित महिला है और वह प्रतिवादी (अपने पति) से कहीं अधिक शिक्षित है. महिला के पास एमए, बीएड और एलएलबी जैसी डिग्रियां हैं. ऐसा नहीं लगता कि वह घर पर बेकार बैठी रहे और प्रतिवादी की ही कमायी पर आश्रित रहे.’’ वर्ष 2008 में महिला को हर महीने 5,000 रुपये बतौर गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था और वर्ष 2015 में इस राशि में 10 प्

पति पर पत्नी के द्वारा झूठा केस करना माना जाएगा क्रुअल्टी, होगा तलाक का आधार : सुप्रीम कोर्ट

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झूठा केस करना माना जाएगा क्रुअल्टी,होगा तलाक  का आधार : सुप्रीम कोर्ट. पति पर पत्नी के द्वारा  झूठा केस करना क्रुअल्टी माना जाएगा :सुप्रीम कोर्ट Cruelty Will Be Considered False Case :Supreme Court.  नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट  तलाक के एक मामले मे सुनवाई करते हुए झूठी शिकायत को आधार बनाते हुए शीर्ष अदालत ने पति के फेवर में तलाक की डिक्री पारित की। लेकिन साथ ही कोर्ट ने कहा कि महिला के सम्मानजनक जीवन की जरूरतों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने पति को निर्देश दिया कि वह पत्नी को 50 लाख रुपये एक मुश्त गुजारा भत्ता और एक करोड़ की कीमत का फ्लैट दे। जस्टिस एके गोयल की अगुवाई वाली बेंच ने कहा, 'न्यूजपेपर में रिपोर्ट है कि पत्नी को पति के परिजनों ने पीटा और वह अनाथ की तरह रह रही है। पत्नी ने इस बारे में हाई कोर्ट से शिकायत की। जिसके बाद पुलिस जांच में केस झूठा साबित हुआ। फिर पति पर जबरन घर में घुसने और मारपीट का केस दर्ज कराया और पुलिस ने छानबीन में पाया कि केस झूठा है और महिला ने खुद ही खुद को चोट पहुंचाई थी। इससे साफ है कि पत्नी ने झूठे आरोप लगाए। हो सकता है कि तलाक की अ

सुप्रीम कोर्ट ने वर्तमान सिविल जजों को उच्चतर न्यायिक सेवा के माध्यम से जिला जज के रूप में नियुक्ति की अनुमति दी

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सुप्रीम कोर्ट ने वर्तमान सिविल जजों को उच्चतर न्यायिक सेवा के माध्यम से जिला जज के रूप में नियुक्ति की अंतरिम अनुमति दी  सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जिला जजों के पद पर नियुक्ति चाहने वाले न्यायिक अधिकारियों को सीधी नियुक्ति द्वारा जिला जज के रूप में नियुक्ति किये जाने की अंतरिम अनुमति दे दी है।          28 July 2018. Law Expert and Judiciary Exam. न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ और न्यायमूर्ति एसके कौल की पीठ ने दिल्ली और इलाहाबाद हाईकोर्टों को अपने निर्देश में कहा कि वे याचिकाकर्ताओं के चयन की प्रक्रिया में आगे बढ़ सकते हैं और इनको जिला जज के रूप में नियुक्त कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि इसके लिए इन लोगों को अधीनस्थ न्यायिक सेवा से इस्तीफा देने की जरूरत नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उनकी नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में लंबित याचिका के निपटारे पर आने वाले अंतिम फैसले पर निर्भर करेगा ।  इस मामले में मुख्य बात यह है कि क्या न्यायिक अधिकारियों को सीधे जिला जजों के रूप में नियुक्ति की जा सकती है या नहीं क्योंकि ये लोग अपनी सेवा के सात साल पूरे कर चुके हैं। इस तरह यह

खुली जेल में रखे गए हुए कैदियों को जमानत के बिना भी पैरोल पर छोड़ा जा सकता है : हाईकोर्ट

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खुले जेल में रखे गए कैदियों को जमानत के बिना भी पैरोल पर छोड़ा जा सकता है : बॉम्बे हाईकोर्ट बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर किसी कैदी को खुले जेल में रखा गया है तो उसको उसके रिश्तेदारों की जमानत के बिना भी थोड़े दिनों की छुट्टी दी जा सकती है। नागपुर पीठ के न्यायमूर्ति पीएन देशमुख और न्यायमूर्ति एमजी गिरत्कर की पीठ ने इस बारे में बॉम्बे हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ के दीपक सुधाकर वाकलेकर बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य मामले में दिए गए फैसले पर भरोसा किया। याचिकाकर्ता ने छोटी अवधि की छुट्टी के लिए आवेदन दिया था पर उसका कोई रिश्तेदार उसके लिए बांड भरने को सामने नहीं आया जिसकी वजह से जेल प्राधिकरण ने उसका आवेदन रद्द कर दिया।  याचिकाकर्ता ने इसके खिलाफ अपील की। पृष्ठभूमि अप्रैल 2017 में याचिकाकर्ता हत्या के आरोप में पुणे की यरवदा जेल के खुले जेल में अपनी उम्र कैद की सजा काट रहा था। उसने 28 दिनों की छुट्टी के लिए आवेदन किया था। अभियुक्त याचिकाकर्ता के वकील जीएस अग्रवाल ने बताया कि इसके पहले उसके मुवक्किल को खुले जेल में उसके अच्छे व्यवहार को देखते हुए खुले जेल में रखा गया था। उसे पहले भी 2

यूपी में फिर लागू होगा अग्रिम जमानत का प्रावधान

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यूपी में फिर लागू होगा अग्रिम जमानत का प्रावधान, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर    जल्द बिल लेकर आएगी सरकार  28 July 2018. Law Expert and Judiciary Exam.  इस बाबत विधेयक को राष्ट्रपति ने 2011 में तकनीकी आधार पर वापस कर दिया था. यूपी में अभी अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है. अभी तक लोगों को गिरफ्तारी पर अग्रिम जमानत लेने के लिए सीधे हाईकोर्ट जाना पड़ता है. नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में अग्रिम जमानत का प्रावधान न होने के मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि प्रदेश में अग्रिम जमानत का प्रवाधान को लागू करने के लिए संबंधित बिल को संशोधित किया जा रहा है, और जल्द ही बिल को विधानसभा में फिर से पेश किया जाएगा. दूसरी तरफ, उत्तराखंड सरकार का कहना था कि यूपी की तर्ज पर उत्तराखंड सरकार भी इसपर काम कर ही है और अगले हफ्ते सरकार अपना रुख साफ करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि इन सब में कितना समय लगेगा? अगली सुनवाई में उत्तराखंड सरकार अपना रुख साफ करे. सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को 6 हफ्ते का दिया था समय पिछली सुनव

अब हर साल नहीं होगा CAR-BIKE इंश्योरेंस : सुप्रीम कोर्ट

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अब हर साल नहीं कराना पड़ेगा CAR-BIKE इंश्‍योरेंस, सुप्रीम कोर्ट ने लागू की नई व्‍यवस्‍था  25 July, 2018, नई दिल्ली. Law Expert and Judiciary Exam . पहली सितंबर से लागू होगा नियम. पहली सितंबर से कार खरीदने के साथ दो साल का थर्ड पार्टी बीमा कराना अनिवार्य होगा. सितंबर 2018 से कार खरीदने के साथ दो साल का थर्ड पार्टी बीमा कराना अनिवार्य होगा. वहीं बाइक के साथ 5 साल का थर्ड पार्टी मोटर इंश्‍योरेंस खरीदना अनिवार्य कर दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने पहली सिंतबर 2018 से इस नियम को अनिवार्य बनाने का आदेश दिया है. कोर्ट ने भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) से इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी करने को कहा है. अब तक सिर्फ दोपहिया वाहनों के लिए ही एक साल से अधिक अवधि वाला बीमा कवर बाजार में मिल रहा था. सिर्फ 45 फीसदी बाइक व स्‍कूटर ही बीमित । सुप्रीम कोर्ट ने सड़क सुरक्षा पर अदालती कमेटी की सिफारिशों का उल्‍लेख करते हुए यह नियम अनिवार्य किया है. कमेटी ने सिफारिश की थी कि दोपहिया या चौपहिया वाहनों की बिक्री के समय थर्ड पार्टी इंश्‍योरेंस कवर एक साल की जगह क्रमश: 5 साल और 2 साल के लिए अन

बालिग़ बेटा गुजारे भत्ते का दावा नहीं कर सकता है पर उसके रोजगार प्राप्त करने तक माँ-बाप को करनी होगी उसकी देखभाल : हाईकोर्ट

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बालिग़ बेटा गुजारे का दावा नहीं कर सकता पर उसके रोजगार प्राप्त करने तक माँ-बाप को उसकी देखभाल करनी होगी : उत्तराखंड हाईकोर्ट उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक महिला को मिलने वाली  गुजारा राशि में यह कहते हुए बढ़ोतरी किये जाने का आदेश दिया कि उसे अपने बालिग़ बेटे की भी देखभाल करनी है क्योंकि वह अभी बेरोजगार है। न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह ने कहा, “यद्यपि एक बालिग़ बेटे को अपने माँ-बाप से गुजारे का दावा करने का अधिकार नहीं होता है लेकिन भारतीय संस्कृति में हम इस बात को नहीं भूल सकते कि माँ-बाप को तब तक अपने बच्चों की देखभाल करनी पड़ती है जब तक कि उसे उपयुक्त रोजगार नहीं मिल जाता और बालिग़ बच्चों की देखभाल करना माँ-बाप का सामाजिक कर्तव्य माना जाता है। इस भारतीय संस्कृति की यूरोपीय संस्कृति या रिवाज से तुलना नहीं की जा सकती है।” अदालत दो पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया जिसे पति और पत्नी दोनों ने दायर किया था जिसमें जनवरी 2011 को दिए गए आदेश को चुनौती दी गई थी। इस आदेश में पति को फैमिली कोर्ट ने  निर्देश दिया था कि वह सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपनी पत्नी को 12 हजार रुपए की राशि गुज

घरेलू झगड़ा या वैवाहिक विवाद गर्भावस्था समाप्त करने की अनुमति देने का पर्याप्त कारण नहीं : हाईकोर्ट

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  पति-पत्नी के आपसी विवाद या वैवाहिक विवाद गर्भावस्था समाप्त करने की अनुमति देने का पर्याप्त कारण नहीं:बॉम्बे हाईकोर्ट  मुख्य तथ्य यह है कि वह अपने वैवाहिक जीवन से गर्भावस्था में पहुंची है और वो बालिग और शिक्षित है । गर्भावस्था समाप्त करने की मांग की एक याचिका से इंकार करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि वैवाहिक विवाद को गर्भावस्था को समाप्त करने का पर्याप्त कारण मानते हुए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट , 1971 के प्रावधानों का आह्वान करते हुए गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।  20 सप्ताह से अधिक का गर्भ धारण करने वाली  एक विवाहित महिला ने बॉम्बे हाईकोर्ट में कहा था कि वह गर्भावस्था जारी रखने का इरादा नहीं रखती क्योंकि वह अपनी पढ़ाई जारी रखने और तलाक के लिए आवेदन करने का इरादा रखती है। उसके अनुसार मिर्गी की बीमारी को ध्यान में रखते हुए और पढ़ाई जारी रखने की इच्छा के चलते उसे गर्भ को आगे ना बढ़ाने की सलाह दी गई है।  उसकी याचिका में यह भी कहा गया था कि उसने हमेशा अपने पति को सुरक्षात्मक यौन संबंध रखने के लिए चेतावनी दी थी लेकिन उसने कोई ध्यान नहीं दिया। याचिक

अब घूस लेने वाले ही नहीं देने वाले भी खाएंगे जेल की हवा : भ्रष्टाचार निरोधक कानून

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छात्र को अपनी उत्तर पुस्तिका देखने का हक : सुप्रीम कोर्ट

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छात्र को अपनी उत्तर पुस्तिका देखने का हक ,पीसीएस-जे अभ्यर्थी को भी अपनी उत्तर पुस्तिका देखने का हक  : सुप्रीम कोर्ट 

12 साल से कम उम्र की बच्चियों से रेप पर फांसी की सजा वाले विधेयक को मोदी कैबिनेट ने दी मंजूरी

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12 साल से कम उम्र की बच्चियों से रेप पर फांसी की सजा वाले विधेयक को मोदी कैबिनेट ने दी मंजूरी

शारीरिक संबंध के लिये एक-दूसरे को ना कर सकते हैं पति-पत्नी : दिल्ली हाईकोर्ट

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शारीरिक संबंध के लिए ना कर सकते हैं पति-पत्नी ,एक दूसरे की इच्छा,भावना का मान सम्मान जरूरी , संविधान के अनुच्छेद 80 के तहत,  जरूरी नहीं है कि पति-पत्नी शारीरिक संबंध बनाने के लिए हमेशा राजी व तैयार हो :दिल्ली हाईकोर्ट  दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि शादी का यह मतलब नहीं है कि कोई महिला अपने पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए हमेशा राजी हो।  July 17 2018 नई दिल्ली. Law Expert and Judiciary Exam . साथ ही कोर्ट ने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि बलात्कार करने के लिए शारीरिक बल का इस्तेमाल किया ही गया हो। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने कहा कि शादी जैसे रिश्ते में पुरुष और महिला दोनों को शारीरिक संबंध के लिए 'ना' कहने का अधिकार है। अदालत ने उन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की जिसमें वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने की मांग की गई है।  पीठ ने कहा , 'शादी का यह मतलब नहीं है कि शारीरिक संबंध बनाने के लिए महिला हर समय तैयार , इच्छुक और राजी हो। पुरुष को यह साबित करना होगा कि महिला ने सहमति दी

घूस देकर पीसीएस अफसर बनने पर सांसद की बेटी सहित 19 पीसीएस अफसर गिरफ्तार :असम लोकसेवा आयोग भर्ती घोटाला

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घूस देकर पीसीएस अफसर बनने पर सांसद की बेटी सहित 19 पीसीएस अफसर गिरफ्तार :असम लोकसेवा आयोग भर्ती घोटाला 

पुलिस संदेह पर किसी नागरिक की अचल संपत्ति को सील नहीं कर सकती : हाईकोर्ट

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पुलिस संदेह पर किसी नागरिक की अचल संपत्ति को सील नहीं कर सकती : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट   JULY 14, 2018 •Law Expert and Judiciary Exam.↔↔ ➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➡ “सीआरपीसी की धारा 102 के तहत ‘जब्त’ का अर्थ है सर्फ चल संपत्ति को अपने कब्जे में लेना”  छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने निसार हुसैन बनाम छत्तीसगढ़ राज्य मामले में अपने फैसले में कहा कि पुलिस को अचल संपत्ति को सील करने का अधिकार नहीं है और सीआरपीसी की धारा 102 के तहत ‘जब्त’ का मतलब है चल संपत्ति को कब्जे में लेना। न्यायमूर्ति संजय के अग्रवाल ने सुधीर वसंत कर्नाटकी मोहिदीन मुहम्मद शेख दाऊद बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ के फैसले का उल्लेख करते हुए कहा सीआरपीसी की धारा 102 के तहत कार्रवाई करते हुए पुलिस अचल संपत्ति को जब्त नहीं कर सकती।  सीआरपीसी की धारा 102 कुछ संपत्तियों को जब्त करने के बारे में पुलिस के अधिकारों से संबंधित है। इसमें कहा गया है : कोई पुलिस अधिकारी ऐसी किसी भी संपत्ति को जब्त कर सकता है जिसके बारे में संदेह है या आरोप है कि वह चुराई गई है या किसी अपराध से वह संबद्ध है।  इस मामले में, पुलिस न

हर लड़की की गुमशुदगी प्रेमी के साथ भागने का मामला नहीं : हाईकोर्ट

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पुलिस को हर नाबालिग लड़की की गुमशुदगी को सिर्फ प्रेमी के साथ भाग जाने का मामला नहीं समझा जाना चाहिए :मुबंई हाईकोर्ट की पुलिस को कड़ी फटकार 

सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश, अब शादियों पर होने वाले खर्च का भी देना होगा हिसाब किताब

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सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश, अब शादी में होने वाले खर्च का भी हिसाब किताब देना होगा अनिवार्य अब शादियों में होने वाले खर्चों का हिसाब-किताब बताना होगा अनिवार्य :सुप्रीम कोर्ट  नई दिल्ली Fri, 13 Jul 2018  .Law Expert and Judiciary Exam . अब शादियों में होने वाले खर्चों का हिसाब-किताब बताने को सरकार जल्द ही अनिवार्य बनाने वाली है। दहेज लेन-देन को रोकने और दहेज कानून के तहत दर्ज होने वाली शिकायतों पर नजर रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जल्द ही नियम बनाने को कहा है।  कोर्ट ने एक सुझाव देते हुए कहा कि शादी में होने वाले फालतू के खर्चों में कटौती कर उसका एक हिस्सा वधु के बैंक खाते में जमा किया जा सकता है, जिससे भविष्य में जरूरत पड़ने पर वो इसका इस्तेमाल कर सके।  गुरुवार को एक सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि शादी में हुए खर्चों का हिसाब-किताब बताना अनिवार्य बनाने पर केंद्र सरकार विचार करे और जल्द ही इस मामले में कोई नियम बनाए। कोर्ट ने एक सुझाव देते हुए कहा कि वर-वधु दोनों पक्षों को शादी पर हुए खर्चों की जानकारी विवाह अधिकारी (मैरिज ऑफिसर) को बताना अनिवार्य होना चाहिए।  क

अगर सरकार ने किसी निर्दोष व्यक्ति को झूठे केस में फंसाया है तो उसे देना होगा मुआवजा : हाईकोर्ट

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अगर राज्य सरकार ने किसी निर्दोष व्यक्ति को झूठे मुकदमे में फंसाया है तो उसे मुआवजा मिलना चाहिए : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट  “किसी निर्दोष को झूठे मामले में फंसाने के एक वाकये से क़ानून के शासन को एक व्यक्ति का समर्थन खोना पड़ता है और वह एक विद्रोही पैदा करता है जो क़ानून खिलाफ जाने को तैयार रहता है।  10 July 2018 .  Madhya Pradesh. High Court . By Law Expert and Judiciary Exam . ख़राब जांच और गलत अभियोजन अंततः इसके कारण बनते हैं”। अगवा करने के मामले में एक व्यक्ति को झूठा फंसाने के लिए राज्य को मुआवजे का निर्देश देते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर खराब जांच और अभियोजन के कारण निर्दोष आरोपी को परेशानी झेलनी पड़ती है तो जीवन के अधिकार के तहत उसे राज्य से मुआवजा पाने का हक़ है। न्यायमूर्ति एसए धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति आनंद पाठक ने उन दोनों व्यक्तियों की याचिका स्वीकार कर ली जिन्हें निचली अदालत ने आईपीसी की धारा 364 के तहत और मध्य प्रदेश डकैती विप्रन प्रभावित क्षेत्र अधिनियम की धारा 11/13 के तहत दोषी मानते हुए सजा दी है।   निचली अदालत ने इन अभियुक्तों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई है। आरोपियों