एक एफआईआर दर्ज कैसे करायें एफआईआर दर्ज कराने के सम्बन्ध में कानून FIR से जुड़े नियम और इसके दर्ज कराने का प्रोसेस हर नागरिक को पता होना चाहिए

एक एफआईआर दर्ज कैसे करायें एफआईआर दर्ज कराने के सम्बन्ध में कानून



FIR से जुड़े नियम और इसके दर्ज कराने का प्रोसेस हर नागरिक को पता होना चाहिए. किसी भी आपराधिक मामले के जांच का पहला कदम FIR कराना होता है.
किसी भी आपराधिक घटना की कानूनी रूप से जांच के लिए FIR दर्ज कराना सबसे पहले कदम होता है. FIR दर्ज होने के बाद पुलिस मामले की जांच करती है. लेकिन, कुछ मामले ऐसे भी होते हैं जहां सुनने में आता है कि पुलिस ने FIR नहीं दर्ज की या किसी व्‍यक्ति ने इसे दर्ज नहीं कराया. दण्‍ड प्रक्रिया संहिता, 1973 में एफआईआर के बारे में पूरी जानकारी दी गई है. 
ऐसे में जरूरी है कि आपको इस बारे में आपको जानकारी हो. आपको पता होना चाहिए कि एफआई दर्ज कराने का प्रोसेस क्‍या है, किन बातों को ध्‍यान देना चाहिए, इसे लेकर आपके क्‍या अधिकार हैं और अगर पुलिस FIR दर्ज करने से मना कर दे तो आपको क्‍या करना चाहिए. आज हम आपको इसी बारे में बता रहे हैं

क्‍या होता है FIR ?
जब पुलिस को किसी संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) की जानकारी मिलती है, उसके बाद वो जो सबसे पहली लिखित डॉक्‍युमेंट तैयार करते हैं, उसे ही फर्स्‍ट इन्‍फॉर्मेशन रिपोर्ट (FIR) कहते हैं. इसके नाम से ही पता चल रहा है कि जब पुलिस को किसी वारदात की सबसे पहली जानकारी मिलती है, FIR उसकी पहली रिपोर्ट होती है. यह आमतौर पर किसी पीड़‍ित द्वारा शिकायत के बाद लिखी गई रिपोर्ट होती है. कोई भी व्‍यक्ति पुलिस से अपने साथ या करीबियों के साथ हुए अपराध की शिकायत मौखिक या लिखित में कर सकता है. पुलिस से कॉल के जरिए भी शिकायत की जा सकती है.

संज्ञेय अपराध में पुलिस के पास किसी व्‍यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार होता है. वे मामले की जांच करने के लिए भी अधिकृत होते हैं. इसके लिए उन्‍हें कोर्ट से अनुमति लेने की जरूरत नहीं होती है. असंज्ञेय अपराध में पुलिस के पास न तो किसी व्‍यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार होता और न ही वे मामले की जांच कर सकते हैं.

FIR का क्‍या महत्‍व है?
किसी भी अपराध या वारदात की जांच में FIR सबसे जरूरी डॉक्‍युमेंट होता है क्‍योंकि आगे की कानूनी कार्रवाई इसी के आधार पर की जाती है. एफआईआर लिखने के बाद ही पुलिस मामले की जांच शुरू करती है.

कौन फाइल करा सकता है FIR?
अगर किसी भी व्‍यक्ति के पास किसी संज्ञेय वारदात की जानकारी है, वो नजदीकी पुलिस स्‍टेशन में FIR दर्ज करा सकता है. ऐसा जरूरी है कि जिसके साथ वारदात हुई है, वही व्‍यक्ति FIR दर्ज कराएगा. अगर किसी पुलिस अधिकारी को संज्ञेय अपराध की जानकारी मिलती है तो वो भी खुद FIR फाइल कर सकता है. अगर आपके साथ कोई वारदात हुई है, अगर आपको पता है कि आपने न चाहते हुए भी कोई अपराध कर दिया है, वारदात के मौके पर वहां मौजूद थे, तो भी आप FIR दर्ज करा सकते हैं.

FIR दर्ज कराने का प्रोसेस क्‍या है?
दण्‍ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के सेक्‍शन 154 में FIR का जिक्र है. जब कोई व्‍यक्ति किसी वारदात/घटना/अपराध की जानकारी मौखिक रूप से देता है तो पुलिस उसे लिखती है. शिकायतकर्ता या जानकारी देने वाले नागरिक के तौर पर यह आपका हक बनता है कि आपने जो मौखिक जानकारी दी है, पुलिस उसे लिखने के बाद आपको पढ़कर सुनाए. आपके द्वारा दी गई जानकारी को पुलिस द्वारा लिखने के बाद इसपर आपका साइन किया जाना जरूरी है.

आपको इस रिपोर्ट तभी साइन करना चाहिए, जब आपको लगे कि पुलिस ने आपके द्वारा दी गई जानकारी ठीक लिखा है, आपके कथन या तथ्‍यों को तोड़-मरोड़कर नहीं लिखा गया है. जो लोग ल‍िख या पढ़ नहीं सकते हैं, वे इस रिपोर्ट पर अंगूठे का निशान लगा सकते हैं. FIR दर्ज कराने के बाद उसकी एक कॉपी जरूर प्राप्‍त करनी चाहिए. FIR की कॉपी ब‍िल्‍कुल मुफ्त में प्राप्‍त करना आपका अधिकार है.

FIR में किस तरह की जानकारी देनी चाहिए?
FIR में आपका नाम, पता, तारीख, समय, रिपोर्टिंग की जगह आदि के बारे में जानकरी होनी चाहिए. वारदात/घटना/अपराध की सच्‍ची जानकारी व तथ्‍य, शामिल व्‍यक्तियों के नाम व अन्‍य जानकारी और अगर कोई चश्‍मदीद है तो उनकी जानकारी भी FIR में देनी चाहिए.

FIR दर्ज कराते समय आपको कोई भी गलत जानकारी या तथ्‍यों को तोड़-मरोड़कर नहीं बतानी चाहिए. भारतीय दंड संहिता, 1860 के सेक्‍शन 203 के तहत इसके लिए आप पर कार्रवाई की जा सकती है. इसमें कोई बयान ऐसा बयान भी नहीं होना चाहिए, जिसके बारे में आपको कोई स्‍पष्‍ट जानकारी नहीं हो.

अगर आपका FIR दर्ज नहीं किया जा रहा तो क्‍या करना चाहिए?
अगर पुलिस स्‍टेशन में आपका FIR दर्ज नहीं किया जा रहा है तो आप पुलिस सुपरिटेंडेंट (SP) या इससे ऊपर डिप्‍टी इंस्‍पेक्‍टर जनरल ऑफ पुलिस (DIG) और इंस्‍पेक्‍टर जनरल ऑफ पुलिस (IG) से शिकायत कर सकते हैं. आप इन अधिकारियों को अपनी शिकायत लिखित रूप में पोस्‍ट के जरिए भेज सकते हैं. वे अपने स्‍तर पर से इस मामले की जांच करेंगे या जांच का निर्देश देंगे. आप चाहें तो प्राइवेट स्‍तर पर अधिकार-क्षेत्र में आने वाले कोर्ट में भी इसकी शिकायत कर सकते हैं.

FIR दर्ज कराने के बाद भी पुलिस कब मामले की जांच नहीं कर सकती है?
आपके द्वारा FIR दर्ज कराने के बाद पुलिस मामले की जांच तब नहीं करती है, जब केस बहुत गंभीर न हो या पुलिस को लगे कि उक्‍त मामले के जांच के लिए कोई पर्याप्‍त कारण नहीं है. हालांकि, इसके लिए पुलिस को रिकॉर्ड करना होता है कि वो क्‍यों इस मामले की जांच नहीं कर रहे हैं. उन्‍हें इस बारे में आपको जानकारी भी देनी होती है.

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