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वकालत नहीं कर सकेंगे फिसड्डी एलएलबी पास छात्र

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वकालत नहीं कर पाएंगे कम अंकों से एलएलबी पास फिसड्डी छात्र वकालत नहीं कर पाएंगे फिसड्डी एलएलबी पास फिसड्डी रैंक पाने वाले एलएलबी नहीं कर पाएंगे वकालत की प्रैक्टिस, 45 फीसदी से दशमलव 1 फीसदी कम आने पर भी नहीं होगा वकालत का रजिस्ट्रेशन । नई दिल्ली, 18 November कानून की पढ़ाई कम अंकों से पास करने वालों के लिए अब वकालत का पेशा करना नामुमकिन है. वकालत का लाइसेंस हासिल करने के लिए 45 फीसदी नंबर आना जरूरी है. इससे जरा भी कम अंक आने पर वकालत के लिए रजिस्ट्रेशन नहीं होगा. पिछले दिनों पंजाब-हरियाणा हाइकोर्ट ने एक युवती की याचिका खारिज करते हुए कहा कि सिर्फ इस आधार पर नहीं मंजूर की जा सकती कि उसका कैरियर तबाह हो जाएगा. इस संबंध में लीगल एजुकेशन रूल्स, 2008 की धारा 7 के प्रावधान बिल्कुल स्पष्ट हैं.  दरअसल, केस दायर करने वाली युवती ने एलएलबी में 44.70 फीसदी अंक हासिल किए थे; लेकिन नियम स्पष्ट हैं कि 45 फीसदी अंक वकालत का रजिस्ट्रेशन कराने के लिए जरूरी हैं.  इस संबंध में बार काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन मनन मिश्रा का कहना है कि 2008 से नियम बदल गए हैं और अब सामान्य श्रेणी के लिए 45 फीसदी

पति की मौत के बाद भी तलाक को चुनौती दे सकती है पत्नीः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

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पति की मौत के बाद भी तलाक को चुनौती दे सकती है पत्नीः हाईकोर्ट पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट: तलाक के एक दशक व पति की मौत के एक वर्ष बाद परिजनों के खिलाफ घरेलू हिंसा का केस दाखिल करने वाली जम्मू निवासी महिला को हाईकोर्ट ने कानून का दुरुपयोग करने वाला करार दिया है। साथ ही हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि पति की मौत के बाद भी एक्स पार्टी तलाक के आदेश को कानूनी वारिस के माध्यम से चुनौती दे सकती है।  पीड़ित महिला ने बताया कि वह जम्मू की रहने वाली है और अंबाला के एक व्यक्ति से उसने विवाह किया था। 1995 में विवाह के बाद दोनों के बीच कुछ सही नहीं रहा और वह दो साल से पहले ही मायके वापस आ गई। इसके बाद उसके पति ने उसके खिलाफ तलाक का केस दाखिल कर दिया जिसमें एक्स पार्टी ऑर्डर के तहत तलाक को 2001 में मंजूरी मिल गई।  हालांकि बाद में 2003 में उसके पति ने साथ में रहने की सहमति जताई और दोनों साथ रहने लगे। इसके बाद 2005 में एक और याचिका दाखिल कर तलाक की मांग की, जो खारिज हो गई। महिला ने बताया कि इसके बाद 2010 में पति की मौत हो गई और पति के भाइयों ने याची के पति के फर्जी हस्ताक्षर कर सारी प्

पिता ऐसी बेटी को गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य नहीं जो नौकरी करती हैं : हाईकोर्ट

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पिता ऐसी बेटी को गुज़ारे की मासिक राशि देने के लिए बाध्य नहीं जो ख़ुद कमा रही है : कर्नाटक हाईकोर्ट कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि पिता अपनी उस बेटी को गुज़ारे की मासिक राशि देने के लिए बाध्य नहीं है जो नौकरी से पैसे कमा रही है। न्यायमूर्ति एसएन सत्यनारायण और पीजीएम पाटिल ने इस बारे में सदाशिवानंद की याचिका आंशिक रूप से स्वीकार कर ली। पीठ ने कहा, "शुरुआत में अदालत ने कुछ राशि के भुगतान के बारे में आदेश देकर ठीक किया था पर जब उस समय के बाद के लिए नहीं जब उसे किसी प्रतिष्ठित कंपनी में 20-25 हज़ार प्रति माह की नौकरी मिल गई। उसको 10 हज़ार की अतिरिक्त राशि दिलाकर उसकी आदत नहीं बिगाड़ी जा सकती। पिता के कंधे पर अन्य अविवाहित बेटियों के गुज़ारे का भार भी है और रिपोर्ट के हिसाब से इन लोगों ने अपनी पढ़ाई रोक दी है और दो बेटे अभी भी बालिग़ नहीं हुए हैं और उसे उनका भरण-पोषण तब तक करना है जबतक कि वे अपने पैरों पर खड़े नहीं हो जाते"। पीठ ने शादी में ख़र्च होने वाली राशि को 15 लाख से घटाकर 5 लाख कर दिया। अदालत ने कहा, "शादी का ख़र्च तब होना है जब बेटियों की शादी का दिन निर्धारित

अखिल भारतीय बार परीक्षा उत्तीर्ण नहीं करने वालों को बार काउंसिल ने प्रेक्टिस करने से रोकने के लिए कहा

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बार काउंसिल ऑफ दिल्ली ने एआईबीई उत्तीर्ण नहीं करने वाले अधिवक्ताओं को प्रैक्टिस करने से रोकने के लिए कहा । बार काउंसिल ऑफ दिल्ली ने दिल्ली के सभी न्यायालयों और न्यायाधिकरणों से अनुरोध किया है कि वे उन अधिवक्ताओं को उनके सामने प्रैक्टिस करने से रोकें, जिन्होंने तय समय के भीतर अखिल भारतीय बार परीक्षा (एआईबीई) उत्तीर्ण नहीं की है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा शैक्षणिक वर्ष 2009-2010 से स्नातक करने वाले सभी लॉ छात्रों के लिए एआईबीई उत्तीर्ण करना अनिवार्य कर दिया गया था और 30 अप्रैल, 2010 (12 जून, 2010 को अधिसूचित) के संकल्प अधिनियम 1961 की धारा 24 के तहत अधिवक्ताओं के रूप में नामांकित किया गया। इसके अलावा, सर्कुलर दिनांक 12.04.2013 को स्पष्ट किया गया था कि एआईबीई में अर्हता प्राप्त करने में असफल होने पर वे एआईबीई में पास होने तक अधिवक्ता के तौर पर काम करना बंद कर देंगे। 26 अगस्त को बार काउंसिल ऑफ दिल्ली द्वारा जारी किए गए पत्र ने सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली उच्च न्यायालय और राजधानी के अन्य न्यायाधिकरणों और अधीनस्थ अदालतों को सूचित किया कि 2010 के बाद से, कुल 4,778 अधिवक्ता, जो अस्थायी

पत्नी द्वारा अपने अधिकारों की रक्षा के लिए अपनाया गया कानूनी तरीका पति पर क्रूरता नहीं कहा जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट

पत्नी द्वारा अपने अधिकारों की रक्षा के लिए अपनाया गया कानूनी तरीका पति पर क्रूरता नहीं कहा जा सकता : सुप्रीम कोर्ट . सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि अपने अधिकारों की रक्षा के लिए पत्नी द्वारा अपनाए गए कानूनी तरीकों को पति पर क्रूरता नहीं माना जा सकता है। न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने यह भी दोहराया कि विवाह का खुद टूटना विवाह विच्छेद की कानूनी मांग करने का आधार नहीं है। अपनी तलाक की याचिका में पति ने आरोप लगाया कि पत्नी ने सीआरपीसी की धारा 107/151 के तहत एक झूठा मामला दर्ज किया था, जिसके परिणामस्वरूप उसे और उसके पिता को गिरफ्तार कर लिया गया। यह भी आरोप लगाया गया था कि पत्नी ने उनके खिलाफ मुकदमा दायर करके और उनके घर के संबंध में स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की थी, जिसमें उसने आरोप लगाया था कि प्रतिवादी ने उसे धोखा दिया था। पति के अनुसार पत्नी के उक्त कृत्यों में मानसिक क्रूरता थी और इसलिए उसने विवाह विच्छेद की मांग की । पत्नी ने कानूनी कार्रवाई का सहारा लेते हुए अपना बचाव किया, जिसमें कहा गया कि उसने अपने अधिकारों और संपत्ति की रक्षा के लिए उक्त कार्र

पति की गलती से विवाह शून्य हुआ है तो पति भरण पोषण देने को बाध्य : सुप्रीम कोर्ट

पति की गलती से विवाह शून्य हुआ है तो पति भरण पोषण देने को बाध्य: सुप्रीम कोर्ट . सुप्रीम कोर्ट ने की केरल हाईकोर्ट के फैसले की पुष्टि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में केरल उच्च न्यायालय के उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें यह कहा गया था कि जहां शादी को रद्द कर दिया गया हो या पति द्वारा की गई कुछ शरारत या गलती के कारण शादी को शून्य घोषित किया गया हो तो भी पति को CrPC की धारा 125 के तहत पत्नी को भरण-पोषण का भुगतान करना होगा। अदालत ने केरल HC के फैसले को रखा बरकरार न्यायमूर्ति आर. बानुमति और न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना की पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ याचिका को खारिज करते हुए पत्नी को भरण-पोषण की पुष्टि करते हुए कहा कि वह फैसले में हस्तक्षेप करने के लिए इच्छुक नहीं है। CrPC की धारा 125 में 'पत्नी' की परिभाषा दरअसल CrPC की धारा 125 में "पत्नी" को एक ऐसी महिला के रूप में परिभाषित किया है जो तलाकशुदा है या अपने पति से तलाक ले चुकी है और उसने दोबारा शादी नहीं की है। इस मामले में 'पत्नी' ने पति की नपुंसकता के आधार पर विवाह को रद्द करने की घोषणा के ल

वैवाहिक रिश्ते खराब होना तलाक का आधार नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट

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वैवाहिक रिश्ते खराब होना तलाक का आधार नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट 

शिकायतकर्ता की गैरहाजिरी में खारिज नहीं होगा मुकदमा : हाईकोर्ट प्रयागराज

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शिकायतकर्ता की गैरहाजिरी में खारिज नहीं होगा मुकदमा: हाईकोर्ट प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि शिकायतकर्ता की उपस्थिति जरूरी न हो तो मजिस्ट्रेट उसकी गैरहाजिरी के आधार पर आपराधिक मुकदमा खारिज नहीं कर सकता है।  कोर्ट ने अपर सत्र न्यायाधीश गाजियाबाद के मुकदमा खारिज करने के आदेश को रद्द कर दिया है और निर्देश दिया है कि दोनों पक्षों को सम्मन कर छह माह में मुकदमा तय करें।यह आदेश न्यायमूर्ति राजुल भार्गव ने प्रमोद त्यागी की अपील को स्वीकार करते हुए दिया है।  मेसर्स टैटिनम फैसिलिटी एंड मैनेजमेंट सर्विस के खिलाफ अपीलार्थी प्रमोद त्यागी ने आपराधिक मुकदमा दाखिल किया। विपक्षी ने हाजिर होकर जमानत कराई। मुकदमे की कुछ तारीखों पर दोनों पक्ष हाजिर नहीं हुए। 30 अक्टूबर 2018 को विपक्षी हाजिर था मगर, शिकायतकर्ता हाजिर नहीं हुआ तो कोर्ट ने आरोपी को बरी करते हुए मुकदमा खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता और आरोपी की हाजिरी जरूरी हो और शिकायतकर्ता गैर हाजिर रहे तो कोर्ट आरोपी को बरी कर मुकदमा समाप्त कर सकती है। किंतु जब शिकायतकर्ता की हाजिरी जरूरी न हो तो मुकदमा गैरहाजिर रहने

पत्नी का उग्र व उदासीन व्यवहार तलाक का उचित आधार नहीं : पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट

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सिर्फ पत्नी का आक्रामक व उग्र व्यवहार व उदासीन रवैया तलाक का उचित आधार नहीं : पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट  " शारीरिक या मानसिक रूप से क्रूरता के इस प्रकार के निराधार आरोपों पर शादी के बंधन को तोड़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती।” पत्नी के आक्रामक व्यवहार और उदासी की मनोदशा का मतलब यह नहीं है कि पत्नी अपने वैवाहिक घर (matrimonial home) के माहौल को खराब कर रही है, एक पति द्वारा दायर वैवाहिक अपील को खारिज करते हुए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी की है। दरअसल न्यायमूर्ति राकेश कुमार जैन और न्यायमूर्ति हरनेश सिंह गिल की पीठ एक व्यक्ति द्वारा फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर विचार कर रही थी जिसने उसकी याचिका खारिज कर दी थी। फैमिली कोर्ट के समक्ष अपनी याचिका में पति ने यह आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी हमेशा खुद को स्वतंत्र और आधुनिक विचारों के साथ व्यापक सोच वाली महिला के रूप में पेश करती है। उसने घरेलू काम करने से इनकार कर दिया और वो हमेशा अजनबियों और दोस्तों के साथ व्हाट्सएप और फेसबुक पर व्यस्त रहती है। उसने यह भी आरोप लगाया है कि उसकी पत्नी के अवैध संबंध थे। पत्नी न

अनुबंधित व ठेकेदार के कर्मचारी संस्था के नियमित कर्मचारी नहीं कहे जा सकते : सुप्रीम कोर्ट

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अनुबंधित कर्मी,ठेका कर्मी नियमित कर्मचारी नहीं हो सकते हैं : सुप्रीम कोर्ट   सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में व्यवस्था दी है कि ठेकेदार के साथ हुए अनुबंध पर काम कर रहे श्रमिकों को संस्थान का नियमित / प्रत्यक्ष कर्मचारी नहीं कहा जा सकता। चाहे ये कर्मचारी नियमित कर्मचारियों की तरह से काम कर रहे हों और उनके काम पर कंपनी का पूर्ण नियंत्रण हो। यह व्यवस्था देकर जस्टिस आरएफ नारीमन और विनीत शरण की पीठ ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया और भारत हैवी इलेक्ट्रीकल्स लिमिटेड (भेल), हरिद्वार में 64 अनुबंध कर्मचारियों को बहाल करने के फैसले को गैर न्यायोचित ठहराया। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 24 अप्रैल 2014 को  दिए फैसले में कहा था कि ये श्रमिक कर्मचारी की विस्तारित परिभाषा में आएंगे और इन कर्मचरियों को सेवा में बहाल किया जाए। जस्टिस नारीमन की पीठ ने यह फैसला भेल की विशेष अनुमति याचिका पर दिया। निकाय का कहना था कि कर्मचारी उसके नियमित कर्मचारी नहीं हैं बल्कि अनुबंध पर लाए गए कर्मी हैं जो यूपी इंडस्ट्रीयल डिस्प्यूट एक्ट, 1947 की धारा 2 के तहत कर्मचारी की परिभाषा के दायरे में नहीं आते। पीठ ने यह

बाहरी व्यक्ति के नाम की गई वसीयत वैध है : सुप्रीम कोर्ट

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बाहरी व्यक्ति के नाम की गई वसीयत वैधः सुप्रीम कोर्ट , नई दिल्ली ।यदि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति किसी बाहरी व्यक्ति के नाम लिख देता है तो इससे वसीयत संदिग्ध नहीं हो जाती।   यह पूर्णतया वैध रहती है। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी कर मृतक की पत्नी की याचिका खारिज कर दी। पत्नी ने पति की वसीयत को यह कहते हुए चुनौती दी थी कि जिसके नाम वसीयत की गई है वह पड़ोसी है और परिवार का सदस्य नहीं है।  विश्वनाथ ने पड़ोस में रहने वाले अरुण के नाम सभी संपत्ति की वसीयत कर दी। अरुण विश्वनाथ और उनकी पत्नी की देखभाल करता था। वसीयत में कहा गया था कि उनकी मृत्यु के बाद अरुण पत्नी की देखभाल  करेगा। पत्नी ने वसीयत झूठा बताते हुए अदालत में चुनौती दी। उसने कहा कि पति उन्हें संपत्ति से महरूम नहीं कर सकते। हालांकि ट्रायल कोर्ट ने इस वसीयत को सही माना और पत्नी की याचिका खारिज कर दी।  हाईकोर्ट भी सहमत नहीं मामला बंबई हाईकोर्ट गया। हाईकोर्ट भी याची से सहमत नहीं हुआ और ट्रायल कोर्ट के आदेश को सही ठहराया। हाईकोर्ट ने कहा कि कानून किसी व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के पक्ष में जो कि परिवार का सदस्य नहीं है, वसीयत करने से नहीं रोक

जमानत राशि याचिकर्ता की हैसियत से ज्यादा न हो : सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट का अहम आदेश, जमानत राशि याचिकाकर्ता की हैसियत से ज्यादा न हो । सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि जमानत की राशि ऐसी नहीं होनी चाहिए जो याचिकाकर्ता की हैसियत से बाहर हो और जिसे वह अदा करने में सक्षम न हो।  यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के त्रिचिरापल्ली के एक मंदिर के मुख्य पुजारी को बिना कोई पैसा जमा कराए जमानत पर रिहा करने का आदेश दे दिया। जस्टिस इंद्रा बनर्जी और अजय रस्तोगी की अवकाशकालीन पीठ ने आदेश में कहा कि यह स्थापित कानून है कि जमानत में ऐसी शर्तें न लगाई जाएं जिसमें भारी राशि जमा करनी पड़े और जो अर्जीकर्ता की आर्थिक हालत से बाहर हो। ऐसी शर्त लगाने से वह जमानत पर बाहर नहीं आ पाएगा। यह एक तरह से जमानत से इनकार करने जैसा होगा। पीठ ने कहा कि जमानत राशि देय क्षमता में ही हानी चाहिए।  इस मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने पुजारी को आदेश दिया था वह 70 लाख रुपये जमा कर जमानत पर रिहा हो सकता है। जमानत की यह रकम मंदिर में हुई भगदड़ में मारे गए सात लोगों के परिजनों को 10 -10 लाख रुपये के रूप में दी जानी थी। कोर्ट ने यह आदेश तब दिया था जब हाईकोर्ट में पुजारी के वकील

पति की 30 % सैलरी पर पत्नी का हक : दिल्ली हाईकोर्ट

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पति की 30% सैलरी पर पत्नी का हक : दिल्ली हाईकोर्ट  पति की 30% सैलरी पर पत्नी का हक : दिल्ली हाईकोर्ट 

घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत विधवा के भरण पोषण का भुगतान करने का आदेश दिया जा सकता है देवर को :सुप्रीम कोर्ट

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घरेलु हिंसा अधिनियम के तहत विधवा के भरण पोषण का भुगतान करने का आदेश दिया जा सकता है देवर को-सुप्रीम कोर्ट  सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देवर यानि पति के भाई को यह आदेश दिया जा सकता है कि वह विधवा को गुजारा भत्ता दे। इस मामले में महिला व उसका पति उस घर में रहते थे,जो उनकी हिंदू संयुक्त परिवार की पैतृक संपत्ति थी। मृतक पति व उसका भाई संयुक्त रूप से बिजनेस करते थे और उनका किरयाना स्टोर था। महिला ने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत दायर शिकायत में आरोप लगाए थे कि उसके पति की मौत के बाद उसे व उसके बच्चे को ससुरालवाले घर में नहीं रहने दिया गया।निचली अदालत ने इस मामले में अंतरिम गुजारे भत्ते का आदेश देते हुए कहा था कि चार हजार रुपए प्रतिमाह महिला को और दो हजार रुपए उसके बच्चे को दिए जाए। इस मामले में मृतक पति के भाई को निर्देश दिया गया था कि यह राशि वह दे। हाईकोर्ट ने भी इस आदेश को सही ठहराया था। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर अपील में महिला के मृतक पति के भाई ने दलील दी कि अधिनियम के प्रावधानों के तहत कोई ऐसा आधार नहीं बनता है जिसके तहत यह जिम्मेदारी उस पर ड़ाली जाए। परंतु जस्टिस डी.वाई चंद्राचूड़ व जस

सरकारी कर्मचारी पर मुकदमा चलाने से पूर्व अभियोजन स्वीकृति जरूरी : हाईकोर्ट

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सरकारी कर्मचारी पर मुकदमा चलाने से पूर्व अभियोजन पक्ष की स्वीकृति जरूरी : हाईकोर्ट 

सुप्रीम कोर्ट ने दुश्मनी से फसाएॅ गये रेप के दोषी को बरी किया ।आदतन व रजिंश से शिकायतकर्ता लोगों को रेप के झूठे मामले में फंसा रही थी ।

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शिकायतकर्ता आदतन दूसरे लोगों को फंसा रही थी, सुप्रीम कोर्ट ने रेप के दोषी को बरी किया "इसी प्रकार की शिकायतें पिछले दिनों शिकायतकर्ता द्वारा अन्य व्यक्तियों के खिलाफ भी की जा रही थीं और बाद में ऐसी शिकायतें झूठी पाई गईं" सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बलात्कार के मामले में समवर्ती दोषी व्यक्ति को बरी कर दिया। न्यायमूर्ति अभय मनोहर सपरे और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष को ऐसी शिकायत करने की आदत थी और वास्तव में उसने इसी प्रकार की जो शिकायतें दूसरों के खिलाफ की थीं, वो बाद में झूठी पाई गईं हैं। दरअसल इस मामले में एक महिला ने गंगा प्रसाद महतो के खिलाफ शिकायत दर्ज कराते हुए आरोप लगाया था कि उसने उस महिला को बंदूक दिखाकर धमकी दी और उसके साथ बलात्कार किया। महिला, उसके पति और पड़ोसी ने ट्रायल कोर्ट में उसके खिलाफ गवाही भी दी। हालांकि अभियोजन पक्ष की मेडिकल जांच नहीं हुई, लेकिन फिर भी ट्रायल कोर्ट ने महतो को दोषी ठहराया था। बाद में उच्च न्यायालय ने दोषसिद्धि की पुष्टि की और उसे 7 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। सुप्रीम कोर्ट ने इन समवर्ती फैसलों को रद्द

बंद,रेल और सड़क रोकना पूरी तरह से असंवैधानिक, आयोजकों पर हो कानूनी कार्रवाई : हाईकोर्ट

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बंद, रेल/ सड़क रोकना पूरी तरह असंवैधानिक, आयोजकों पर हो कार्यवाही : गुवाहाटी हाईकोर्ट  "यदि कोई व्यक्ति आगे आता है और जान-माल के नुकसान का दावा करता है तो बंद के आयोजकों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा और वे मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होंगे।" गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने माना है कि सड़क और रेल अवरोध भारत में बंद के विभिन्न प्रकार हैं और इस प्रकार यह बंद अवैध और असंवैधानिक हैं। न्यायमूर्ति उज्जल भुयान ने अपने फैसले में यह भी देखा कि इस तरह के बंद या नाकाबंदी के आयोजक या आयोजकों, कम से कम ऐसे आयोजक (ओं) के प्रमुख पदाधिकारी, भारतीय दंड संहिता, 1860 के विभिन्न प्रावधानों, राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम,1956 और रेलवे अधिनियम, 1989 के तहत मुकदमा चलाने के लिए उत्तरदायी होंगे। लोअर असम इंटर डिस्ट्रिक्ट स्टेज कैरिज बस ओनर्स एसोसिएशन द्वारा दायर एक रिट याचिका पर विचार करते हुए अदालत ने पाया कि सड़क-अवरोधक और रेल-अवरोधक कई अवसरों पर राज्य को पंगु बना देता है जिसका लोगों पर एक व्यापक प्रभाव पड़ता है, इसके अलावा इससे अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान होता है। इसे 'स्थानिक समस्या' कर

गैंगरेप :मौत से भी बडी सजा होती तो वो भी देते : हाईकोर्ट

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सामूहिक दुष्कर्म : सात दरिंदों की फांसी की सजा बरकरार , कोर्ट ने कहा कि मौत से बड़ी सजा होती तो वो भी देते 

शादी ख़त्म करने के लिए कोर्ट में अर्जी कभी भी दी जा सकती है : सुप्रीम कोर्ट

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शादी ख़त्म करने के लिए अर्ज़ी कभी भी दी जा सकती है : सुप्रीम कोर्ट  सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विशेष शादी अधिनियम की धारा 24 के तहत शादी को टूटा घोषित किए जाने के लिए अर्ज़ी देने की कोई अवधि निर्धारित नहीं है। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने कहा कि एक बार जब कोई शादी टूट जाती है तो इसको किसी भी समय ऐसा घोषित किया जा सकता है। वर्तमान मामले में 'पत्नी' ने ज़िला अदालत, पुणे में विशेष शादी अधिनियम, 1954 की धारा 25 के तहत अर्ज़ी डाली थी कि उसकी शादी को इस आधार पर टूटा हुआ घोषित किया जाए कि उसके पति ने सक्षम अदालत से तलाक़ का आदेश लिए बिना उससे शादी की थी और शादी के समय उसकी पत्नी जीवित थे और उसने अपनी पहली शादी के बारे में उससे झूठ बोला था। निचली अदालत ने उसकी अर्ज़ी यह कहते हुए खारिज कर दी कि विशेष शादी अधिनयम, 1954 ई धारा 25 के तहत यह शादी को टूटा घोषित करने के लिए काफ़ी नहीं है। कोर्ट ने कहा कि उत्पीड़न या धोखाधड़ी के सामने आने के एक साल के भीतर दायर की जानी चाहिए। बॉम्बे हाईकोर्ट ने उसकी अपील ख़ारिज कर दी और निचली अदालत के फ़ैसले को सही ठहराया जिस

पैतृक कृषि भूमि किसी बाहरी व्यक्ति को नहीं बेची जा सकती है : सुप्रीम कोर्ट

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बाप-दादाओं की खेती की जमीन किसी बाहरी को नहीं बेची जा सकती : सुप्रीम कोर्ट  सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि पैतृक कृषि भूमि बाहरी व्यक्ति को नहीं बेची जा सकती है. इस मामले में सवाल था कि क्या कृषि भूमि भी धारा 22 के प्रावधानों के दायरे में आती है.  सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक जो व्यवस्था दी है हिन्दू उत्तराधिकारी पैतृक कृषि भूमि का अपना हिस्सा बेचना चाहता है, तो उसे घर के व्यक्ति को ही प्राथमिकता देनी होगी. वह संपत्ति बाहरी व्यक्ति को नहीं बेच सकता. जस्टिस यूयू ललित व एमआर शाह की पीठ ने यह फैसला हिमाचल प्रदेश के एक मामले में दिया है. दरअसल सवाल यह था कि क्या कृषि भूमि भी धारा 22 के प्रावधानों के दायरे में आती है या फिर नहीं आती है. क्या है धारा 22 में प्रावधान: सबसे पहले आपको बताते है कि आखिर धारा 22 में प्रावधान क्या है. जब बिना वसीयत के किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसकी संपत्ति उत्तराधिकारियों के नाम पर आ जाती है. अगर उत्तराधिकारी अपना हिस्सा बेचना चाहता है तो उसे अपने बचे हुए उत्तराधिकारी को प्राथमिकता देनी होगी. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि कृषि भूमि भी धारा

आपराधिक मामले को छिपाने पर रद्द अधिवक्ता पंजीकरण की बहाली नहीं हो सकती :सुप्रीम कोर्ट

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आपराधिक मामले के बारे में तथ्यों को छिपाने के कारण पंजीकरण से हाथ धोने वाले वक़ील को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं ।सुप्रीम कोर्ट ने उस वक़ील की याचिका ख़ारिज कर दी है जिसका पंजीकरण इस आधार पर रद्द कर दिया गया था कि उसने एक आपराधिक मामले से जुड़े तथ्यों को छिपाया था। आनंद कुमार शर्मा को हिमाचल प्रदेश के बार काउन्सिल में जुलाई 1988 में एडवोकेट के रूप में पंजीकरण मिला। पर उनका पंजीकरण बाद में इस आधार पर रद्द कर दिया गया कि एक तो वे हिमाचल प्रदेश सरकार की सेवा में थे और दूसरा यह कि वे एक आपराधिक मामले में भी फँसे थे। यद्यपि शर्मा हिमाचल बार काउन्सिल में पंजीकृत थे, पर बाद में बीसीआई ने उनका पंजीकरण राजस्थान में ट्रान्स्फ़र कर दिया। पर बाद में बीसीआई ने 1995 में उपरोक्त आधार पर उनका पंजीकरण रद्द कर दिया। बीसीआई के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने भी सही माना। इसके बाद शर्मा ने दुबारा पंजीकरण के लिए आवेदन दिया। उनकी अपील पर राजस्थान हाईकोर्ट ने राजस्थान बार काउन्सिल को विचार करने को कहा पर बार काउन्सिल ने उसके आवेदन को रद्द कर दिया और बीसीआई ने भी उसके इस फ़ैसले को सही ठहराया। यह बात है वर्ष 20

एससी-एसटी संशोधित अधिनियम कोर्ट के अधिकारों को सिर्फ़ उन मामलों में ज़मानत देने तक सीमित नहीं करता है जहाँ किसी भी तरह का अपराध नहीं हुआ है : हाईकोर्ट

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 एससी/एसटी संशोधित अधिनियम कोर्ट के अधिकार को सिर्फ़ उन मामलों में ज़मानत देने तक सीमित नहीं करता जहाँ किसी भी तरह का अपराध नहीं हुआ है : कलकत्ता हाईकोर्ट कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक पत्रकार को अग्रिम ज़मानत दे दी है जिस पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 की धारा 3(1) (r) (u) के तहत मामला दर्ज किया गया है। न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बाग़ची और मनोजित मंडल ने कहा कि इस अधिनियम में धारा 18A को जोड़ने के बावजूद कोर्ट को इस बात की पड़ताल का अधिकार है कि एफआइआर में जिस तरह के आरोप लगाए गए हैं वे ठहरते हैं कि नहीं। यह एफआईआर एक बंगाली अख़बार के प्रकाशक के ख़िलाफ़ दर्ज किया गया है क्योंकि सबर समुदाय के लोगों ने उसमें प्रकाशित एक ख़बर "मृत्तु नोई सबरपल्लिर चिंता भात" (मौत नहीं, सबर समुदाय की चिंता भोजन है) को लेकर शिकायत दर्ज कराई है।  अचरज की बात यह है कि इस ख़बर में यह बताया गया था कि इस समुदाय को इलाज की सुविधा नहीं है, उन्हें बुनियादी सुविधाएँ जैसे पानी, आवास, जॉब कार्ड और वोटर कार्ड आदि भी नहीं है। ख़बर में आरोप लगाया गया कि प्रशासन द्वारा उनको सुविधाएँ

आम लोगों का मंदिर के प्रतिदिन के दर्शन पूजन या समारोहों में भाग लेना मंदिर के निजी /सार्वजनिक होने के लिए महत्वपूर्ण है : सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आम लोगों का मंदिर के दर्शन और प्रतिदिन की पूजा या समारोहों में भाग लेना मंदिर के निजी/सार्वजनिक चरित्र के निर्धारण के लिए महत्त्वपूर्ण है।  इस संबंध में इंदौर के एक राम मंदिर के पुजारी ने एक मामला दायर कर यह घोषित किए जाने की माँग की कि मंदिर निजी है और राज्य को इस मंदिर के प्रबंधन, पूजा अर्चना और कृषि भूमि पर क़ब्ज़े का कोई अधिकार नहीं है। मामले में राज्य सरकार के अधिकारियों के ख़िलाफ़ हुक्मनामा भी जारी करने का आग्रह किया गया। यद्यपि मिचलि अदालत ने इस मामले में अपना फ़ैसला सुना दिया था पर प्रथम अपीली अदालत ने इसे निरस्त कर दिया। हाईकोर्ट ने भी प्रथम अपीली अदालत के फ़ैसले को सही ठहराया और कहा कि विवादित भूमि भगवान के नाम पर है और राम दास और बजरंग दास के नाम पुजारी के रूप में हैं और पुजारियों के नाम बदलते रहे हैं और ये पुजारी किसी एक परिवार के नहीं हैं और इनके बीच कोई ख़ून का रिश्ता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि उन्होंने इस बाबत कोई सबूत नहीं दिया है कि इस मंदिर को किसने बनवाया और उसने इसके लिए पैसे कहाँ से जमा किए। कोर्ट ने यह भी कहा कि रजिस्टर मे

अस्पताल के ग़लत इलाज को लापरवाही नहीं माना जाता सकता है : सुप्रीम कोर्ट

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ग़लत इलाज को लापरवाही नहीं माना जा सकता : सुप्रीम कोर्ट . सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण मंच (NCDRC) के फ़ैसले के ख़िलाफ़ दायर एक अपील को ख़ारिज कर दिया। इस अपील में कहा गया था कि अस्पताल के ग़लत इलाज के कारण उसकी पत्नी की मौत हो गई। हमें अपीलकर्ता के प्रति जो हुआ उसका दुःख है पर इस भावना को क़ानूनी उपचार में नहीं बदला जा सकता, यह कहना था न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल का जिन्होंने NCDRC के फ़ैसले को सही माना जिसमें कहा गया था कि यह मामला ज़्यादा से ज़्यादा ग़लत इलाज का हो सकता है; यह निश्चित रूप से इलाज में लापरवाही का नहीं हो सकता'। अपनी शिकायत में इस व्यक्ति ने आरोप लगाया था कि अस्पताल ने निम्नलिखित क़दम उठाए जिसे इलाज में लापरवाही माना जा सकता है (a) अनुचित और अप्रभावी दवा देना; (b) आईवी (IV) इलाज के लिए कन्नुला को दुबारा शुरू करने में विफल रहना; (c) मृतक को समय से पहले ही अस्पताल से छुट्टी दे देना जबकि रोगी को आईसीयू में रखे जाने की ज़रूरत थी; (d) पोलीपोड एंटीबायोटिक को मुँह से खिलाना जबकि वह इस हालत में नहीं थी और उसे

आपराधिक शिकायत को सिर्फ़ इसलिए निरस्त नहीं किया जा सकता है क्योंकि शिकायत दीवानी प्रकृति का लगता है : सुप्रीम कोर्ट

आपराधिक शिकायत को सिर्फ़ इसलिए निरस्त नहीं किया जा सकता क्योंकि शिकायत दीवानी प्रकृति का लगता है : सुप्रीम कोर्ट  सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक शिकायतों को सिर्फ़ इसलिए नहीं निरस्त किया जा सकता कि क्योंकि यह शिकायत दीवानी प्रकृति का लगता है। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने कहा कि अगर शिकायत में आरोपी के ख़िलाफ़ प्रथम दृष्ट्या अपराध दिखती है तो आपराधिक प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई जाएगी। अपनी शिकायत में शिकायतकर्ता ने एक भवन निर्माता पर फ़र्जीवाड़े का आरोप लगाया और फ़र्ज़ी आधार पर दस्तावेज़ बनाकर उसके आधार पर क़रार का आरोप लगाया। मजिस्ट्रेट ने इस शिकायत की जाँच करवाई। पुलिस ने रिपोर्ट पेश की और कहा कि यह शिकायत दीवानी प्रकृति का लगता है। निचली अदालत ने आरोपी को सम्मन जारी किया। बाद में हाईकोर्ट ने सम्मन को निरस्त कर दिया और कहा कि यह मामला दीवानी प्रकृति का है और अगर आरोपी के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला चलता है तो यह क़ानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस Kamal Shivaji Pokarnekar vs. State of Maharashtra में दायर अपील में कहा

अगर पत्नी अपने पति के रिश्तेदारों के व्यवहार से ख़ुश नहीं है तो उसका अलग रहना और गुज़ारा भत्ता माॅगना जायज :बॉम्बे हाईकोर्ट

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अगर पत्नी अपने पति के रिश्तेदारों के व्यवहार से ख़ुश नहीं है तो उसका अलग रहना और गुज़ारा ख़र्च माँगना जायज़ : बॉम्बे हाईकोर्ट   बॉम्बे हाईकोर्ट  ने कहा है कि अगर पत्नी पति के मां-बाप के व्यवहार से ख़ुश नहीं है और उनके साथ रहने में असुविधा महसूस कर रही है तो उसका अलग रहना और इस पर आने वाले ख़र्च की माँग करना जायज़ है। न्यायमूर्ति वीके जाधव ने एक पति की उस याचिका को ख़ारिज कर दिया जिसमें उसने फ़ैमिली कोर्ट के फ़ैसले को चुनौती दी थी। फ़ैमिली कोर्ट ने उसकी शादी के अधिकारों की बहाली की माँग संबंधी याचिका ख़ारिज कर दी थी और उसको अपनी पत्नी को गुज़ारा भत्ता देने का आदेश दिया था। पति के वक़ील ने हाईकोर्ट में कहा कि इस मामले में पति-पत्नी के बीच संबंध मधुर हैं और इसलिए पत्नी के घर से अलग रहने और गुज़ारा भत्ते के माँग का कोई कारण नहीं है। उसने यह भी कहा कि पति अपने बूढ़े माँ-बाप को छोड़कर घर से दूर नहीं रह सकता। कोर्ट ने पत्नी की दलील पर भी ग़ौर किया जिसने कहा कि उसे अपने पति से कोई शिकायत नहीं है पर उसके रिश्तेदार उसे परेशान कर रहे हैं। इन दलीलों पर ग़ौर करते हुए न्यायमूर्ति जाधव ने कहा कि

ग्राहक की बिना मंजूरी खाते से रकम निकली तो बैंक होंगे जिम्मेदार : हाईकोर्ट

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ग्राहक की बिना मंजूरी खाते से रकम निकली तो बैंक होगें जिम्मेदार : हाईकोर्ट