अस्पताल के ग़लत इलाज को लापरवाही नहीं माना जाता सकता है : सुप्रीम कोर्ट

ग़लत इलाज को लापरवाही नहीं माना जा सकता : सुप्रीम कोर्ट .

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण मंच (NCDRC) के फ़ैसले के ख़िलाफ़ दायर एक अपील को ख़ारिज कर दिया। इस अपील में कहा गया था कि अस्पताल के ग़लत इलाज के कारण उसकी पत्नी की मौत हो गई। हमें अपीलकर्ता के प्रति जो हुआ उसका दुःख है पर इस भावना को क़ानूनी उपचार में नहीं बदला जा सकता, यह कहना था न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल का जिन्होंने NCDRC के फ़ैसले को सही माना जिसमें कहा गया था कि यह मामला ज़्यादा से ज़्यादा ग़लत इलाज का हो सकता है; यह निश्चित रूप से इलाज में लापरवाही का नहीं हो सकता'। अपनी शिकायत में इस व्यक्ति ने आरोप लगाया था कि अस्पताल ने निम्नलिखित क़दम उठाए जिसे इलाज में लापरवाही माना जा सकता है (a) अनुचित और अप्रभावी दवा देना; (b) आईवी (IV) इलाज के लिए कन्नुला को दुबारा शुरू करने में विफल रहना; (c) मृतक को समय से पहले ही अस्पताल से छुट्टी दे देना जबकि रोगी को आईसीयू में रखे जाने की ज़रूरत थी; (d) पोलीपोड एंटीबायोटिक को मुँह से खिलाना जबकि वह इस हालत में नहीं थी और उसे यह दवा नस में दी जानी चाहिए थी। यद्यपि राज्य आयोग ने उसका आवेदन स्वीकार कर लिया और उसे 15 लाख मुआवज़ा देने का आदेश दिया पर राष्ट्रीय आयोग ने इस आदेश को ख़ारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने उसकी अपील पर ग़ौर करते हुए चिकित्सा में लापरवाही के आरोप के इस मामले में जिस तरह के क़ानूने सिद्धांत (बोलम टेस्ट, कुसुम शर्मा एवं अन्य बनाम बत्रा हॉस्पिटल एंड मेडिकल रीसर्च सेंटर और जेकब मैथ्यू बनाम पंजाब राज्य) लागू होंगे उस पर विचार किया। शिकायतकर्ता के अनुसार, 16.10.2011 की अगली सुबह कन्नुला ने काम करना बंद कर दिया और मरीज़ को दुबारा कन्नुला दिया ही नहीं गया। एंटीबायोटिक को मुँह से देने को सही पाया गया। अपीलकर्ता का कहना था कि इसी वजह से वह यह कहता है कि यह इलाज में गफ़लत का मामला है। पीठ ने NCDRC ने जो दृष्टिकोण अपनाया है उसे सहमति जताई। पीठ ने कहा, "…इस बात को देखते हुए कि मरीज़ सामान्य था…और उसके सभी महत्त्वपूर्ण अंग ठीक से काम कर रहे थे जिसे देखते हुए उन्हें टैब्लेट खाने को दिया गया। NCDRC का मानना है कि यह डॉक्टर (प्रतिवादी नम्बर 2) का पेशेवर आकलन था और यह मरीज़ के स्वास्थ्य की स्थिति पर आधारित था और इसे चिकित्सा में लापरवाही नहीं कहा जा सकता।" कोर्ट ने आगे कहा कि इस तरह का कोई संकेत नहीं है कि मानक प्रक्रिया से अबूझ तरीक़े से हटाने का कोई साक्ष्य नहीं है। कोर्ट ने इस अपील को ख़ारिज करते हुए कहा कि वह अपीलकर्ता से सहानुभूति रखता है पर वह उसकी पत्नी की मौत का मुआवज़ा नहीं दिला सकता।

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