आपराधिक शिकायत को सिर्फ़ इसलिए निरस्त नहीं किया जा सकता है क्योंकि शिकायत दीवानी प्रकृति का लगता है : सुप्रीम कोर्ट

आपराधिक शिकायत को सिर्फ़ इसलिए निरस्त नहीं किया जा सकता क्योंकि शिकायत दीवानी प्रकृति का लगता है : सुप्रीम कोर्ट

 सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक शिकायतों को सिर्फ़ इसलिए नहीं निरस्त किया जा सकता कि क्योंकि यह शिकायत दीवानी प्रकृति का लगता है। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने कहा कि अगर शिकायत में आरोपी के ख़िलाफ़ प्रथम दृष्ट्या अपराध दिखती है तो आपराधिक प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई जाएगी। अपनी शिकायत में शिकायतकर्ता ने एक भवन निर्माता पर फ़र्जीवाड़े का आरोप लगाया और फ़र्ज़ी आधार पर दस्तावेज़ बनाकर उसके आधार पर क़रार का आरोप लगाया। मजिस्ट्रेट ने इस शिकायत की जाँच करवाई। पुलिस ने रिपोर्ट पेश की और कहा कि यह शिकायत दीवानी प्रकृति का लगता है। निचली अदालत ने आरोपी को सम्मन जारी किया। बाद में हाईकोर्ट ने सम्मन को निरस्त कर दिया और कहा कि यह मामला दीवानी प्रकृति का है और अगर आरोपी के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला चलता है तो यह क़ानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस Kamal Shivaji Pokarnekar vs. State of Maharashtra में दायर अपील में कहा कि शिकायत पर ग़ौर करने के बाद हलफ़नामा दायर कर शिकायत में जिस तरह की बात कही गई है, उसे देखते हुए उसमें हाईकोर्ट के हस्तक्षेप का का कोई कारण नहीं है।कोर्ट ने कहा कि इस अवस्था में मजिस्ट्रेट से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वह शिकायतकर्ता के ख़िलाफ़ प्रस्तुत दस्तावेज़ों की जाँच करे क्योंकि मजिस्ट्रेट को इस बात की जाँच नहीं करनी चाहिए कि जो दस्तावेज़ पेश किए गए हैं उसके आधार पर सज़ा दी जा सकती है या नहीं। पीठ ने हाईकोर्ट का बचाव करने वाले वक़ील की इस दलील को भी अस्वीकार कर दिया कि यह विवाद दीवानी प्रकृति का है। "…आरोप सही हैं या ग़लत, इसका निर्णय अदालती सुनवाई में ही हो सकता है। प्रारम्भिक अवस्था में आरोपी की दलीलों के सही होने या ग़लत होने की जाँच के फेर में पड़कर अदालती प्रक्रिया को रोका नहीं जाना चाहिए। आपराधिक प्रक्रिया को सिर्फ़ इस आधार पर निरस्त नहीं किया जा सकता कि शिकायत दीवानी प्रकृति की है…"

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