घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत विधवा के भरण पोषण का भुगतान करने का आदेश दिया जा सकता है देवर को :सुप्रीम कोर्ट

घरेलु हिंसा अधिनियम के तहत विधवा के भरण पोषण का भुगतान करने का आदेश दिया जा सकता है देवर को-सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देवर यानि पति के भाई को यह आदेश दिया जा सकता है कि वह विधवा को गुजारा भत्ता दे। इस मामले में महिला व उसका पति उस घर में रहते थे,जो उनकी हिंदू संयुक्त परिवार की पैतृक संपत्ति थी। मृतक पति व उसका भाई संयुक्त रूप से बिजनेस करते थे और उनका किरयाना स्टोर था। महिला ने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत दायर शिकायत में आरोप लगाए थे कि उसके पति की मौत के बाद उसे व उसके बच्चे को ससुरालवाले घर में नहीं रहने दिया गया।निचली अदालत ने इस मामले में अंतरिम गुजारे भत्ते का आदेश देते हुए कहा था कि चार हजार रुपए प्रतिमाह महिला को और दो हजार रुपए उसके बच्चे को दिए जाए। इस मामले में मृतक पति के भाई को निर्देश दिया गया था कि यह राशि वह दे। हाईकोर्ट ने भी इस आदेश को सही ठहराया था। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर अपील में महिला के मृतक पति के भाई ने दलील दी कि अधिनियम के प्रावधानों के तहत कोई ऐसा आधार नहीं बनता है जिसके तहत यह जिम्मेदारी उस पर ड़ाली जाए। परंतु जस्टिस डी.वाई चंद्राचूड़ व जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा कि धारा 2( क्यू) के मूलभाग से संकेत मिलता है कि अभिव्यक्ति ''प्रतिवादी'' का अर्थ किसी भी व्यस्क पुरूष से है,जो है, या है,जो असंुष्ट व्यक्ति के साथ घरेलू संबंध में है और जिनके खिलाफ राहत मांगी गई है।पीठ ने कहा कि- ''नियम इंगित करता है कि दोनों,एक असंतुष्ट पत्नी या विवाह की प्रकृति के रिश्ते में रहने वाली महिला भी पुरूष साथी या पति के किसी रिश्तेदार के खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकती है,जैसा भी मामला हो...धारा 2(एफ) अभिव्यक्ति 'घरेलू संबंध' को परिभाषित करती है। जिसका मतलब एक ऐसे रिश्ते से है जहां दो व्यक्ति रहते हैं या एक साझे घर में किसी भी समय पांच एक साथ रहते है।जब उनके आपस में संबंध,विवाह या विवाह की प्रकृति,गोद लेने या सभी सदस्य का एक संयुक्त परिवार की तरह रहने के कारण है।ये सभी परिभाषाएं संसद द्वारा विधान के तहत दायित्व व उपाय बनाने के संबंध में उसकी मंशा के विस्तार व आयाम को बताती है।'' कोर्ट ने कहा कि शिकायत में लगाए गए आरोपों से प्रथम दृष्टया यह इंगित हो रहा है कि शिकायतकर्ता का केस यह है कि जिस घर में वह और उसका पति रहते थे,वह संयुक्त परिवार से संबंधित था। निचली अदालत के आदेश को सही ठहराते हुए पीठ ने कहा कि- ''अंततः क्या धारा 2(एफ), धारा 2(क्यू) और धारा 2(एस) की आवश्यकताएं को पूरा किया गया है,जो सबूत का एक मामला है,जिस पर मुकदमे के दौरान निर्णय किया जाएगा। इस स्तर पर,रख-रखाव के लिए अंतरिम आदेश देने के लिए वह सामग्री या तथ्य उपलब्ध थे,जो रख-रखाव या गुजारे भत्ते के लिए निर्देश देने को उचित साबित करते है।''

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