उत्तराखंड सरकार शीघ्र अग्रिम जमानत के प्रावधान को बहाल करे : उत्तराखंड हाईकोर्ट

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सरकार से अग्रिम जमानत के प्रावधान को बहाल करने को कहा ।

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा है कि वह अग्रिम जमानत के प्रावधान को बहाल करे। कोर्ट ने कहा, “मेरे विचार में,उत्तराखंड राज्य में अग्रिम जमानत प्राप्त करने का प्रावधान होना चाहिए।” “यह अदालत उत्तराखंड राज्य को सुझाव देता है कि वह उत्तर प्रदेश अधिनयम 1976 की धारा 9 को हटा दे और हाईकोर्ट एवं सत्र अदालतों को अग्रिम जमानत देने का अधिकार दे,” न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह ने कहा। न्यायमूर्ति सिंह ने रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया की वह इस आदेश की एक प्रति राज्य के प्रधान सचिव (गृह) और प्रधान सचिव (क़ानून सह एलआर) को तत्काल भेजे। कोर्ट ने इन सचिवों से कहा है कि वे इस मामले को अविलम्ब मुख्यमंत्री के समक्ष रखें ताकि इस बारे में अध्यादेश जारी किया जा सके। कोर्ट ने जुलाई 2018 में हरिद्वार में ठगी, आपराधिक धमकी आदि के मामले में दायर प्राथमिकी को निरस्त करने को लेकर एक अपील की सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। याचिका में कोर्ट से मांग की गई थी कि वह याचिकाकर्ता को गिरफ्तार नहीं करने का पुलिस को निर्देश दे। याचिकाकर्ता के खिलाफ अगली सुनवाई तक किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं करने का आदेश देते हुए कोर्ट ने कहा, “ऐसे संज्ञेय अपराध जिनमें सात साल से कम की सजा हो सकती है, इसकी प्राथमिकी को निरस्त करने और अंतरिम संरक्षण प्राप्त करने के लिए आने वाले आवेदनों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है।” सीआरपीसी की धारा 438 में ऐसे लोगों को जमानत दिए जाने का प्रावधान है जिन्हें इस बात की आशंका है कि उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश ने इस धारा को समाप्त कर दिया था और चूंकि उत्तराखंड भी उत्तर प्रदेश के इस क़ानून को स्वीकार करता है, इसलिए वहाँ भी अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है। न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, “संविधान का अनुच्छेद 21 क़ानून की प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन और उसकी निजी स्वतन्त्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है।” कोर्ट ने इस बारे में मेनका गांधी बनाम भारत संघ और डीके बासु, अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य मामले का हवाला दिया जिसमें कोर्ट ने किसी व्यक्ति की गरिमा के अधिकार पर जोर दिया है। कोर्ट ने कहा कि क़ानून के सिद्धांतों का पालन किये बिना किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करना उसकी निजी स्वतन्त्रता का हनन है। “किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा उसके लिए उतना ही महत्त्वपूर्ण होता है जितना कि कानूनी फर्म के लिए लोगों में उसकी शुभेच्छा का। इसके साथ ही कोर्ट ने उत्तराखंड में सीआरपीसी की धारा 438 को बहाल करने का सुझाव दिया।

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