ओवर-स्पीडिंग का मतलब लापरवाही से गाड़ी चलाना नहीं है : हाईकोर्ट

जरूरी नहीं कि ओवर-स्पीडिंग का मतलब लापरवाही से गाड़ी चलाना भी है : हाईकोर्ट ."लापरवाही से गाड़ी चलाने’ जैसे शब्द का सीधे यह अर्थ नहीं है कि लापरवाही से चलाई जा रही गाड़ी ज्यादा तेज रफ़्तार से भी चल रही हो। 

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कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि यह जरूरी नहीं है कि जिस गाड़ी ने नियम तोड़ा है वह अवश्य ही हमेशा जरूरत से ज्यादा रफ़्तार में रही हो और उसको ‘जल्दबाजी और लापरवाही की ड्राइविंग’ कही जाएगी । न्यायमूर्ति एचबी प्रभाकर शास्त्री ने यह बात एक लॉरी ड्राईवर की याचिका को खारिज करते हुए कही। इस ड्राईवर को निचली अदालत ने आईपीसी की धारा 279 और 304  और मोटर वाहन अधिनियम की धारा 134 के तहत सजा सुनाई थी।

इस ड्राईवर की लॉरी जिसे वह खुद चला रहा था, ने  एक साइकिल चालक को ठोकर मार दिया था जिससे उसकी मौत हो गई थी । लॉरी ड्राईवर ने अपनी अपील में कहा था कि जहां पर दुर्घटना हुई थी वह एक भारी ट्रैफिक का क्षेत्र है और वहाँ स्पीड ब्रेकर्स भी लगे हुए हैं ताकि कोई तेजी से ट्रक न चलाए। ड्राईवर की अपील खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा, “गवाहों के बयानों के अनुसार जहां दुर्घटना हुई वहा स्पीड ब्रेकर्स थे और ट्रैफिक सिग्नल भी था लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उस क्षेत्र में इनकी वजह से कोई लापरवाही से तेज गाड़ी नहीं चला सकता है। जल्दबाजी की ड्राइविंग से सीधे यह अर्थ नहीं लगाया जा सकता है कि वह वाहन लापरवाही के अलावा तेज रफ़्तार से भी चलाई जा रही थी।” कोर्ट ने इस बारे में रवि कपूर बनाम राजस्थान राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया।
इस फैसले में कहा गया था कि ड्राईवर जो जिस तरह की सावधानियां बरतनी चाहिए वैसा अगर वह नहीं बरत रहा है तो उसे लापरवाही की ड्राइविंग मानी जाएगी। वर्तमान मामले में सिर्फ इसलिए कि दुर्घटना स्थल पर कुछ स्पीड ब्रेकर्स थे और ट्रैफिक सिग्नल था, इसका यह अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिए कि वहाँ इस ड्राईवर ने लापरवाही से तेज रफ़्तार में गाड़ी नहीं चलाई होगी।” इस तरह कोर्ट ने अपीलकर्ता की पुनर्विचार की अपील ख़ारिज कर दी.  

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