सार्वजनिक भाषणों में कोर्ट के फैसलों की आलोचना करना कोई गलत आचरण नहीं : हाईकोर्ट
सार्वजनिक भाषणों में कोर्ट के फैसलों की सिर्फ आलोचना करना कोई गलत आचरण नहीं है : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
JUNE 28, 2018
Law Expert and Judiciary Exam
“सिर्फ हाईकोर्ट के किसी फैसले की आलोचना आरपी अधिनियम की धारा 123 के तहत गलत आचरण नहीं।” भाजपा के एक विधायक के खिलाफ चुनाव याचिका को खारिज करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक भाषण में हाईकोर्ट के किसी फैसले की महज आलोचना जन प्रतिनिधित्व क़ानून की धारा 123 के तहत गलत आचरण नहीं है।
चुनाव हार चुके एक उम्मीदवार ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि एक चुनाव सभा में भाजपा उम्मीदवार के पति विक्रम वर्मा ने हाईकोर्ट के एक फैसले की आलोचना की थी और कहा था कि “हाईकोर्ट में बैठने वाले भगवान नहीं हैं” और उन्होंने इसकी मुख्य बातें नहीं बताई। उन्होंने एक अन्य आरोप में उन पर हिंदू होने के नाम पर मतदाताओं को उकसाने का आरोप भी लगाया था।
न्यायमूर्ति रोहित आर्या ने कहा, “पहले क्लॉज (iv) की जहां तक बात है कि ‘हाईकोर्ट में बैठने वाले भगवान नहीं होते, और मुख्य बातों को छोड़ दिया गया था,’ सिर्फ सार्वजनिक भाषण में कोर्ट के फैसले की आलोचना आरपी अधिनियम की धारा 123 के तहत कोई गलत आचरण का आधार नहीं है।” कोर्ट ने यह भी कहा कि जब विक्रम वर्मा ने कथित भाषण दिया उस समय उम्मीदवार वहाँ मौजूद नहीं था और अगर उनकी इस तरह की बात को गलत आचरण मान भी लिया जाए तो…तो भी यह प्रतिवादी या उनके चुनाव प्रतिनिधि की मर्जी से नहीं कहा गया था और इस आधार पर प्रतिवादी के चुनाव को रद्द नहीं किया जा सकता।
पीठ ने याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया और कहा कि उसने बिना किसी आधार के मनगढ़ंत आरोपों के आधार पर याचिका दायर की जिसकी वह गलत और अदालत में नहीं ठहरने वाले साक्ष्य के आधार पर सही साबित करना चाहता था और इसे 2014 से इसे लंबित रखा ताकि वह लोगों की नजर में राजनीतिक रूप से जीवित रह सके।
“सिर्फ हाईकोर्ट के किसी फैसले की आलोचना आरपी अधिनियम की धारा 123 के तहत गलत आचरण नहीं।” भाजपा के एक विधायक के खिलाफ चुनाव याचिका को खारिज करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक भाषण में हाईकोर्ट के किसी फैसले की महज आलोचना जन प्रतिनिधित्व क़ानून की धारा 123 के तहत गलत आचरण नहीं है।
चुनाव हार चुके एक उम्मीदवार ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि एक चुनाव सभा में भाजपा उम्मीदवार के पति विक्रम वर्मा ने हाईकोर्ट के एक फैसले की आलोचना की थी और कहा था कि “हाईकोर्ट में बैठने वाले भगवान नहीं हैं” और उन्होंने इसकी मुख्य बातें नहीं बताई। उन्होंने एक अन्य आरोप में उन पर हिंदू होने के नाम पर मतदाताओं को उकसाने का आरोप भी लगाया था।
न्यायमूर्ति रोहित आर्या ने कहा, “पहले क्लॉज (iv) की जहां तक बात है कि ‘हाईकोर्ट में बैठने वाले भगवान नहीं होते, और मुख्य बातों को छोड़ दिया गया था,’ सिर्फ सार्वजनिक भाषण में कोर्ट के फैसले की आलोचना आरपी अधिनियम की धारा 123 के तहत कोई गलत आचरण का आधार नहीं है।” कोर्ट ने यह भी कहा कि जब विक्रम वर्मा ने कथित भाषण दिया उस समय उम्मीदवार वहाँ मौजूद नहीं था और अगर उनकी इस तरह की बात को गलत आचरण मान भी लिया जाए तो…तो भी यह प्रतिवादी या उनके चुनाव प्रतिनिधि की मर्जी से नहीं कहा गया था और इस आधार पर प्रतिवादी के चुनाव को रद्द नहीं किया जा सकता।
पीठ ने याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया और कहा कि उसने बिना किसी आधार के मनगढ़ंत आरोपों के आधार पर याचिका दायर की जिसकी वह गलत और अदालत में नहीं ठहरने वाले साक्ष्य के आधार पर सही साबित करना चाहता था और इसे 2014 से इसे लंबित रखा ताकि वह लोगों की नजर में राजनीतिक रूप से जीवित रह सके।
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