मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत आने वाली महिलाएं भी घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत राहत का दावा कर सकती है : हाईकोर्ट
मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत आने वाली महिलाएं भी घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत राहत का दावा कर सकती हैं : बॉम्बे हाईकोर्ट
MAY 15, 2018 • मुख्य सुर्खियां
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि इस्लामी निजी क़ानून के तहत आने वाली महिलाएं भी घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मुआवजे का दावा कर सकती हैं।
न्यायमूर्ति भरती डांगरे ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि कोई महिला मुसलमान है, उसको किसी भी कोर्ट से घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रावधानों के तहत राहत पाने पर कोई पाबंदी नहीं है।
फैमिली कोर्ट, बांद्रा ने 22 जुलाई 2017 को पत्नी की मुआवजे की मांग की याचिका स्वीकार कर ली जिसके बाद पति अली अब्बास दारूवाला ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी।
फैमिली कोर्ट ने दारूवाला को निर्देश दिया था कि वह अपनी पत्नी को 25 और दोनों बच्चों को 20 हजार रुपए हर माह गुजारा भत्ते के रूप में दे। अली और उनकी पत्नी शहनाज़ बोहरा समुदाय के हैं। शहनाज़ ने मुस्लिम विवाह अधिनियम 1939 के तहत 2015 में फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दी। उसने अपने बच्चों के संरक्षण, गुजारा भत्ता और रहने की जगह की मांग की।
शहनाज़ ने संरक्षण, गुजारा भत्ता और रहने की जगह की मांग अलग से की जिसका अली ने विरोध किया। इस आवेदन को रद्द कर दिया गया जिसके बाद पत्नी ने संरक्षण, गुजारा भत्ता और रहने के जगह की मांग के लिए 20 मई 2016 को फिर आवेदन दिया।
इसके बाद पति ने कहा कि उसने 29 मार्च 2017 को अपनी पत्नी को तलाक दे दिया। पति ने यह भी दावा किया कि शहनाज ने पहले मेहर की राशि स्वीकार कर ली थी जिसे बाद में वापस कर दिया गया लेकिन मई में दुबारा दे दिया गया।
जून 2017 में पत्नी ने घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 12, 18, 19, 20, 22 और 23 के तहत मामला दायर किया। फैसला याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि दोनों ही पक्ष मुस्लिम निजी क़ानून के तहत आते हैं।
दोनों के निजी संबंध मुस्लिम निजी क़ानून (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 और मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 और मुस्लिम महिला (तलाक के दौरान अधिकारों के संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत प्रशासित हैं।
उन्होंने कहा कि तलाक मुस्लिम विवाह अधिनियम के तहत ‘खुला’ के द्वारा माँगी गयी है जो कि सहमति से तलाक का मामला है और इसके तहत किसी भी तरह के अन्य राहत का प्रावधान नहीं है।
शहनाज के वकील ने कहा कि उसके मुवक्किल को घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत राहत प्राप्त करने पर सिर्फ इस वजह से कोई प्रतिबन्ध नहीं है कि वह मुसलमान है और मुस्लिम निजी क़ानून के तहत प्रशासित है। उन्होंने यह भी कहा कि उसके मुवक्किल ने तलाकनामा स्वीकार नहीं किया था और शायरा बानो बनाम भारत संघ एवं अन्य के मामले पर भरोसा किया ताकि यह साबित कर सके कि तलाकनामा वैध नहीं है।
इस मामले में घरेलू हिंसा अधिनियम को लागू किए जाने के बारे में कोर्ट ने कहा : “…इस अधिनियम के तहत मिले अधिकार किसी भी तरह उसको घरेलू हिंसा अधिनियम के तहर राहत प्राप्त करने से नहीं रोकता।” कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि दोनों पक्ष मुस्लिम निजी क़ानून के तहत आते हैं, पत्नी को घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत राहत प्राप्त करने से कुछ भी नहीं रोक सकता।
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