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पांच रूपये का पाॅपकार्न मल्टीप्लेक्स में ढाई सौ रुपए में नहीं बेच सकते : हाईकोर्ट

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 पांच रुपये का पॉपकार्न मल्टीप्लेक्स में ढाई सौ रुपये में क्यों  : बॉम्बे हाईकोर्ट  मुंबई Thu, 28 Jun 2018 Law Expert and Judiciary Exam  बांबे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से पूछा है कि मल्टीप्लेक्स थिएटरों में पांच रुपये का पॉपकार्न 250 रुपये में बेचने का अधिकार किसने दिया है।  हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से जवाब तलब करते हुए कहा है कि क्या मल्टीप्लेक्स थिएटरों में राज्य सरकार का नियंत्रण नहीं है।  बुधवार को हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और न्यायमूर्ति अनुज प्रभु देसाई की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए पूछा कि यदि सुरक्षा कारणों के चलते बाहर की खाद्य सामग्री मल्टीप्लेक्स थिएटर में ले जाने की मनाही है तो फिर मल्टीप्लेक्स में मिलने वाले खाद्य पदार्थ की कीमतों पर नियंत्रण क्यों नहीं है।  वहीं, मल्टीप्लेक्स थिएटर मालिकों के वकील ने दलील दी कि यदि हम लग्जरी सेवा दे रहे हैं तो हमें कीमत तय करने का भी अधिकार है। वकील ने कहा कि क्या राज्य सरकार ताज और ओबेरॉय जैसे पंच सितारा होटलों में 10 रुपये में चाय बेचने की सख्ती कर सकती है। दरअसल, मल्टीप्लेक्स थिएटरों में घर से खा

याची को अधिवक्ता द्वारा गलत कानूनी सलाह लिखित बयान दाखिल करने में देरी होने का सही आधार : हाईकोर्ट

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गलत क़ानूनी सलाह लिखित बयान दाखिल करने में देरी होने का सही आधार : कलकत्ता हाईकोर्ट   JUNE 28, 2018 • Law Expert and Judiciary Exam.   ‘वास्तविक जीवन में हम अमूमन पाते हैं कि बेंच और बार दोनों ही गलती करते हैं। हम ऐसी आदर्श स्थिति की कल्पना नहीं कर सकते और क़ानूनी सलाह की पवित्रता को उस ऊंचाई तक नहीं पहुंचा सकते कि मुकदमादार घुटा हुआ महसूस करे’। कलकत्ता हाईकोर्ट ने गौर किया है कि अगर कोई वकील गलत सलाह देता है तो लिखित बयान दाखिल करने में होने वाली देरी को उसका सही आधार माना जाएगा। न्यायमूर्ति सब्यसाची भट्टाचार्य ने यह बात निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए कही। जज ने इस दलील के आधार पर दायर की गई याचिका को भी खारिज कर दिया कि क़ानून के बारे में जानकारी नहीं होने और वकील की गलत क़ानूनी सलाह को लिखित बयान दाखिल करने में होने वाले देरी के लिए जिम्मेदार नहीं माना जा सकता।  कोर्ट ने कहा कि एक याचिकाकर्ता के लिए अपने लिखित बयान दर्ज कराने में और किस बात की देरी हो सकती है अगर यह उसके वकील द्वारा दी गई गलत क़ानूनी सलाह नहीं है तो। कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने वकील की गलत क़ानूनी 

ओवर-स्पीडिंग का मतलब लापरवाही से गाड़ी चलाना नहीं है : हाईकोर्ट

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जरूरी नहीं कि ओवर-स्पीडिंग का मतलब लापरवाही से गाड़ी चलाना भी है : हाईकोर्ट . "लापरवाही से गाड़ी चलाने’ जैसे शब्द का सीधे यह अर्थ नहीं है कि लापरवाही से चलाई जा रही गाड़ी ज्यादा तेज रफ़्तार से भी चल रही हो।  28 June 2018. Law Expert and Judiciary Exam. ➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖⏩ कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि यह जरूरी नहीं है कि जिस गाड़ी ने नियम तोड़ा है वह अवश्य ही हमेशा जरूरत से ज्यादा रफ़्तार में रही हो और उसको ‘जल्दबाजी और लापरवाही की ड्राइविंग’ कही जाएगी । न्यायमूर्ति एचबी प्रभाकर शास्त्री ने यह बात एक लॉरी ड्राईवर की याचिका को खारिज करते हुए कही। इस ड्राईवर को निचली अदालत ने आईपीसी की धारा 279 और 304  और मोटर वाहन अधिनियम की धारा 134 के तहत सजा सुनाई थी। इस ड्राईवर की लॉरी जिसे वह खुद चला रहा था, ने  एक साइकिल चालक को ठोकर मार दिया था जिससे उसकी मौत हो गई थी । लॉरी ड्राईवर ने अपनी अपील में कहा था कि जहां पर दुर्घटना हुई थी वह एक भारी ट्रैफिक का क्षेत्र है और वहाँ स्पीड ब्रेकर्स भी लगे हुए हैं ताकि कोई तेजी से ट्रक न चलाए। ड्राईवर की अपील खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा, “गवाहों क

सार्वजनिक भाषणों में कोर्ट के फैसलों की आलोचना करना कोई गलत आचरण नहीं : हाईकोर्ट

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सार्वजनिक भाषणों में कोर्ट के फैसलों की सिर्फ आलोचना करना कोई गलत आचरण नहीं है : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट JUNE 28, 2018 Law Expert and Judiciary Exam “सिर्फ हाईकोर्ट के किसी फैसले की आलोचना आरपी अधिनियम की धारा 123 के तहत गलत आचरण नहीं।” भाजपा के एक विधायक के खिलाफ चुनाव याचिका को खारिज करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक भाषण में हाईकोर्ट के किसी फैसले की महज आलोचना जन प्रतिनिधित्व क़ानून की धारा 123 के तहत गलत आचरण नहीं है। चुनाव हार चुके एक उम्मीदवार ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि एक चुनाव सभा में भाजपा उम्मीदवार के पति विक्रम वर्मा ने हाईकोर्ट के एक फैसले की आलोचना की थी और कहा था कि “हाईकोर्ट में बैठने वाले भगवान नहीं हैं” और उन्होंने इसकी मुख्य बातें नहीं बताई। उन्होंने एक अन्य आरोप में उन पर हिंदू होने के नाम पर मतदाताओं को उकसाने का आरोप भी लगाया था। न्यायमूर्ति रोहित आर्या ने कहा, “पहले क्लॉज (iv) की जहां तक बात है कि ‘हाईकोर्ट में बैठने वाले भगवान नहीं होते, और मुख्य बातों को छोड़ दिया गया था,’ सिर्फ सार्वजनिक भाषण में कोर्ट के फैसले की आलोचना आरपी अधिनि

धार्मिक स्थलों में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को लेकर कोर्ट ने सुनाया फैसला अब दिन में भी लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर होगी रोक

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धार्मिक स्थलों में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को लेकर कोर्ट ने सुनाया फैसला अब दिन में भी लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर लगेगी रोक

बार एसोसिएशन वकील को पेश होने से नहीं रोक सकती : सुप्रीम कोर्ट

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बार एसोसिएशन वकील को पेश होने से पैरवी करने से नहीं रोक सकती : सुप्रीम कोर्ट

परीक्षार्थी को आरटीआई अधिनियम के अंतर्गत अपनी उत्तर पुस्तिका का निरीक्षण करने का अधिकार : सीआईसी(केन्द्रीय सूचना आयोग)

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परीक्षार्थी को आरटीआई अधिनियम के तहत अपनी उत्तर पुस्तिका का निरीक्षण करने का अधिकार :   सीआईसी(केन्द्रीय सूचना आयोग ) दिनांक 2 2 जून 2018. दिल्ली.↔ ➖ ➖ ➖ ➖ ➖ ➖ ➖ ➖ ➖ ➖ ➖ ➖ ➖ ➖ ➖ ➖ ➖ ➖ ➖ ➖ ➖ ➖ ➖ ➖ केन्द्रीय  सूचना आयोग (सीआईसी) ने✔ सीबीएसई और अन्य बनाम आदित्य बंदोपाध्याय और अन्य  के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर रहते हुए हाल ही में कहा है कि एक परीक्षार्थी को सूचना अधिकार अधिनियम, 2015 के तहत अपने उत्तर पत्रों का निरीक्षण करने का अधिकार है।  सर्वोच्च न्यायालय ने आदित्य बंदोपाध्याय के मामले में फैसला सुनाया था कि अधिनियम की धारा 2 (एफ) के तहत एक सूचना पत्र ‘सूचना’ के दायरे में आ जाएगा और  छात्रों के पास अधिनियम के तहत उनकी मूल्यांकन की गई उत्तर पुस्तिका तक पहुंचने का मौलिक और कानूनी अधिकार है। सर्वोच्च न्यायालय ने देखा था, “जब कोई उम्मीदवार परीक्षा में भाग लेता है और प्रश्न के जवाब में अपने उत्तर लिखता है और परिणाम के मूल्यांकन और घोषणा के लिए इसे जांच निकाय को प्रस्तुत करता है तो उत्तर पुस्तिका एक दस्तावेज़ या रिकॉर्ड होती है।  जब उत्तर पुस्तिका का जांच निकाय

व्हाट्सएप्प से भेजा गया नोटिस वैध : हाईकोर्ट

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            व्हाट्सएप्प से भेजा गया नोटिस वैध : हाईकोर्ट

अब यूपीएससी पास किये बिना बनेंगे ज्वाइंट सेक्रेटरी लेवल अफसर, मोदी सरकार ने लिया बड़ा फैसला

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अब यूपीएससी पास किये बिना बनेंगे अफसर ,मोदी सरकार का बड़ा फैसला

सुसाइड नोट में नाम होने से किसी को अपराधी नहीं ठहराया जा सकता : हाईकोर्ट

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सुसाइड नोट में नाम होने से किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता  : हाईकोर्ट

पत्नी के एटीएम कार्ड को नहीं इस्तेमाल कर सकता पति : कोर्ट

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पत्नी के एटीएम कार्ड को नहीं इस्तेमाल कर सकता पति : कोर्ट Court Says Husband Can't Use Wife's ATM Card                                Thu Jun 07 2018 नई दिल्ली ↔ ➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖ अगर आप अपना एटीएम कार्ड और पिन नंबर किसी दूसरे को देकर पैसा निकलवाते हैं तो सावधान हो जाइए। ऐसा हो सकता है कि आप को अपने पैसे से हाथ धोना पड़ जाए। बेंगलुरु की एक महिला को ऐसा करना महंगा पड़ गया। दरअसल महिला ने अपना डेबिट कार्ड और पिन नंबर पति को देकर एटीएम से पैसे निकालने के लिए भेजी थी। लेकिन इन पैसों को पाने के लिए उसे साढ़े तीन साल तक संघर्ष करना पड़ा, फिर भी उसके हाथ कुछ नहीं आया। पीड़िता को बैंक नियम के चलते 25,000 रुपये गंवाने पड़े। बेंगलुरु के मराठाहल्ली इलाके में रहने वाली वंदना नाम की महिला ने 14 नवंबर, 2013 को अपने पति राजेश को एटीएम कार्ड देकर पैसे निकालने भेजा। वंदना ने कुछ दिन पहले ही एक बच्चे को जन्म दिया था, वह मैटर्निटी लीव पर चल रही थीं। पति पैसे निकालने के लिए एटीएम गया और कार्ड को स्वाइप किया। मशीन से एक पर्ची निकली कि खाते से पैसे कट गए हैं, लेकिन एटीएम से पैस

क्लेट -2018 की मेरिट लिस्ट की घोषणा व काउन्सिलिंग पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने किया इनकार

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क्लेट-2018 की मेरिट लिस्ट की घोषणा  व काउन्सिलिंग पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने किया इनकार

प्रोन्नति में आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने दी मंजूरी

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प्रोन्नति में आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने दी मंजूरी

एससी/एसटी कर्मचारियों के प्रमोशन में आरक्षण के लिए मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने दी मंजूरी

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बिना टीईटी उत्तीर्ण शिक्षकों को हटाने का हाईकोर्ट ने दिया आदेश

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सीधे पुलिस कर्मियों पर केस दर्ज करने का आदेश नहीं दे सकता एससी-एसटी आयोग : हाईकोर्ट

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