Advocate Act 1961
अधिवक्ता (Advocate) अधिनियम 1961 –
(Advocate) अधिनियम 1961 – अधिवक्ता, अभिभाषक या वकील (ऐडवोकेट advocate) के अनेक अर्थ हैं, परंतु हिंदी में ऐसे व्यक्ति से है जिसको न्यायालय में किसी अन्य व्यक्ति की ओर से उसके हेतु या वाद का प्रतिपादन करने का अधिकार प्राप्त हो। अधिवक्ता किसी दूसरे व्यक्ति के स्थान पर (या उसके तरफ से) दलील प्रस्तुत करता है। इसका प्रयोग मुख्यत: कानून के सन्दर्भ में होता है। प्राय: अधिकांश लोगों के पास अपनी बात को प्रभावी ढ़ंग से कहने की क्षमता, ज्ञान, कौशल, या भाषा-शक्ति नहीं होती। अधिवक्ता की जरूरत इसी बात को रेखांकित करती है। अन्य बातों के अलावा अधिवक्ता का कानूनविद (lawyer) होना चाहिये। कानूनविद् उसको कहते हैं जो कानून का विशेषज्ञ हो या जिसने कानून का व्यावसायिक अध्ययन किया हो। वकील की भूमिका कानूनी न्यायालय में काफी भिन्न होती है।
भारतीय न्यायप्रणाली में ऐसे व्यक्तियों की दो श्रेणियाँ हैं :
ऐडवोकेट तथा वकील
Advocate Act 1961 Hindi – ऐडवोकेट के नामांकन के लिए भारतीय “बार काउंसिल’ अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक प्रादेशिक उच्च न्यायालय के अपने-अपने नियम हैं। उच्चतम न्यायालय में नामांकित ऐडवोकेट देश के किसी भी न्यायालय के समक्ष प्रतिपादन कर सकता है। वकील, उच्चतम या उच्च न्यायालय के समक्ष प्रतिपादन नहीं कर सकता। ऐडवोकेट जनरल अर्थात् महाधिवक्ता शासकीय पक्ष का प्रतिपादन करने के लिए प्रमुखतम अधिकारी है
अधिवक्ता अधिनियम 1961 के धारा 35 के अंतर्गत स्टेट बार कौंसिल द्वारा अधिवक्ता के विरूद्ध प्राप्त दुराचरण की शिकायत पर अथवा स्वप्रेरणा से अधिवक्ता के विरूद्ध व्यवसायिक दुराचरण की कार्यवाही करने और अधिवक्ता को दंडित करने का प्रावधान है। कोई भी व्यक्ति अधिवक्ता के दुराचरण की शिकायत स्टेट बार कौंसिल को कर सकता है। स्टेट बार कौंसिल की अनुशासन समिति शिकायत प्रकरण रजिस्टर कर उसकी सुनवाई कर निम्न आदेशों में से कोई आदेश पारित कर सकती है:-
(क) शिकायत खारिज कर सकेगी।
(ख) अधिवक्ता को कोई चुनौती दे सकेगी।
(ग) अधिवक्ता को विधिव्यवसाय से उतनी अवधि के लिये निलंबित कर सकेगी, जितनी ठीक समझें, निलंबन की अवधि में अधिवक्ता को विधि व्यवसाय करने की पात्रता नहीं होगी।
(घ) अधिवक्ता का नाम अधिवक्ताओं की राज्य नामावली में से हटा सकेगी।
अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 37 के अंतर्गत स्टेट बार कौंसिल के आदेश के विरूद्ध बार कौंसिल ऑफ इंडिया नई दिल्ली के समक्ष और धारा 38 के अंतर्गत बार कौंसिल आफ इंडिया के आदेश के विरूद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकेगी।
Advocate Act 1961 – सुप्रीम कोर्ट के अनुसार अधिवक्ता के विरूद्ध व्यवसायिक दुराचरण के संबंध में अनुशासन संबंधी कार्यवाही करते समय अनुशासन समिति को संदेह के लाभ के सिद्धांत को और तथ्यों के युक्तियुक्त संदेह से परे सिद्ध करने की आवश्यकता को ध्यान में रखना चाहिए और यह भी देखा जाना चाहिए कि अधिवक्ता ने सद्भावनापूर्वक कार्य किया या दुर्भावनापूर्वक तथा अपराधिक आशय (मेन्सरिया) मौजूद था या नही। (ए.आई.आर. 1989 सुप्रीम कोर्ट 245) वकालत एवं व्यवसायिक आचार नीति के अंतर्गत अधिवक्ताओं के कृत्य जो व्यवसायिक दुराचरण की श्रेणी में आते है:-
दुराचरण के श्रेणी में है:- Advocate Act 1961
1. बिना उचित प्रमाण पत्र के विधि व्यवसाय करना।
2. न्यायालय में बिना उचित कारण अनुपस्थित होना और प्रकरण को स्थगित करना।
3. मामले के विषय में मवक्किल के निर्देश के बिना कार्यवाही करना।
4. कूटरचित शपत पत्र अथवा दस्तावेज प्रस्तुत करना और शपथ अधिनियम 1969 में दिये गये वैधानीक कर्त्तव्य की अवहेलना करना। (ए.आई.आर. 1985 सुप्रीम कोर्ट 287)
5. अधिवक्ता द्वारा बार-बार न्यायालय की अवमानना करना।
6. न्यायाधीश से अपने संबधों की जानकारी देकर मुवक्किल से राशि वसूल करना।
7. न्यास भंग करना।
8. अपने मुवक्किल को नुकसान पहुंचाने का कृत्य करना।
9. विधि व्यवसाय के साथ अन्य व्यवसाय करना।
10. मामले से संबंधित प्रापर्टी का क्रय करना।
11. लीगल एड प्रकरणों में फीस की मांग करना।
12. मामले से संबंधित सच्चाई को छुपाना।
13. वकालत नामा प्रस्तुत करने के पूर्व तय की गई फीस के अतिरिक्त फीस की मांग करना और न्यायालय के आदेश पर प्राप्त रकम में शेयर की मांग करना।
14. लोकपद का दुरूपयोग करना।
15. मुवक्किल से न्यायालय में जमा करने हेतु प्राप्त रकम जमा न करना।
16. रिकार्ड एवं साक्ष्य को बिगाड़ना एवं साथी को तोड़ना।
17. मुवक्किल द्वारा अपनी केस फाईल वापस मांगने पर फाईल वापस न करना और फीस की मांग करना (सुप्रीम कोर्ट 2000(1) मनिसा नोट 27 पेज 183 सुप्रीम कोर्ट)
18. अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 24 के अंर्तगत अपात्र व्यक्ति द्वारा विधि व्यवसाय करना।(ए.आई.आर. 1997 सुप्रीम कोर्ट 864)
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