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सुप्रीम कोर्ट ने दुश्मनी से फसाएॅ गये रेप के दोषी को बरी किया ।आदतन व रजिंश से शिकायतकर्ता लोगों को रेप के झूठे मामले में फंसा रही थी ।

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शिकायतकर्ता आदतन दूसरे लोगों को फंसा रही थी, सुप्रीम कोर्ट ने रेप के दोषी को बरी किया "इसी प्रकार की शिकायतें पिछले दिनों शिकायतकर्ता द्वारा अन्य व्यक्तियों के खिलाफ भी की जा रही थीं और बाद में ऐसी शिकायतें झूठी पाई गईं" सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बलात्कार के मामले में समवर्ती दोषी व्यक्ति को बरी कर दिया। न्यायमूर्ति अभय मनोहर सपरे और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष को ऐसी शिकायत करने की आदत थी और वास्तव में उसने इसी प्रकार की जो शिकायतें दूसरों के खिलाफ की थीं, वो बाद में झूठी पाई गईं हैं। दरअसल इस मामले में एक महिला ने गंगा प्रसाद महतो के खिलाफ शिकायत दर्ज कराते हुए आरोप लगाया था कि उसने उस महिला को बंदूक दिखाकर धमकी दी और उसके साथ बलात्कार किया। महिला, उसके पति और पड़ोसी ने ट्रायल कोर्ट में उसके खिलाफ गवाही भी दी। हालांकि अभियोजन पक्ष की मेडिकल जांच नहीं हुई, लेकिन फिर भी ट्रायल कोर्ट ने महतो को दोषी ठहराया था। बाद में उच्च न्यायालय ने दोषसिद्धि की पुष्टि की और उसे 7 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। सुप्रीम कोर्ट ने इन समवर्ती फैसलों को रद्द

बंद,रेल और सड़क रोकना पूरी तरह से असंवैधानिक, आयोजकों पर हो कानूनी कार्रवाई : हाईकोर्ट

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बंद, रेल/ सड़क रोकना पूरी तरह असंवैधानिक, आयोजकों पर हो कार्यवाही : गुवाहाटी हाईकोर्ट  "यदि कोई व्यक्ति आगे आता है और जान-माल के नुकसान का दावा करता है तो बंद के आयोजकों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा और वे मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होंगे।" गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने माना है कि सड़क और रेल अवरोध भारत में बंद के विभिन्न प्रकार हैं और इस प्रकार यह बंद अवैध और असंवैधानिक हैं। न्यायमूर्ति उज्जल भुयान ने अपने फैसले में यह भी देखा कि इस तरह के बंद या नाकाबंदी के आयोजक या आयोजकों, कम से कम ऐसे आयोजक (ओं) के प्रमुख पदाधिकारी, भारतीय दंड संहिता, 1860 के विभिन्न प्रावधानों, राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम,1956 और रेलवे अधिनियम, 1989 के तहत मुकदमा चलाने के लिए उत्तरदायी होंगे। लोअर असम इंटर डिस्ट्रिक्ट स्टेज कैरिज बस ओनर्स एसोसिएशन द्वारा दायर एक रिट याचिका पर विचार करते हुए अदालत ने पाया कि सड़क-अवरोधक और रेल-अवरोधक कई अवसरों पर राज्य को पंगु बना देता है जिसका लोगों पर एक व्यापक प्रभाव पड़ता है, इसके अलावा इससे अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान होता है। इसे 'स्थानिक समस्या' कर

गैंगरेप :मौत से भी बडी सजा होती तो वो भी देते : हाईकोर्ट

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सामूहिक दुष्कर्म : सात दरिंदों की फांसी की सजा बरकरार , कोर्ट ने कहा कि मौत से बड़ी सजा होती तो वो भी देते 

शादी ख़त्म करने के लिए कोर्ट में अर्जी कभी भी दी जा सकती है : सुप्रीम कोर्ट

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शादी ख़त्म करने के लिए अर्ज़ी कभी भी दी जा सकती है : सुप्रीम कोर्ट  सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विशेष शादी अधिनियम की धारा 24 के तहत शादी को टूटा घोषित किए जाने के लिए अर्ज़ी देने की कोई अवधि निर्धारित नहीं है। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने कहा कि एक बार जब कोई शादी टूट जाती है तो इसको किसी भी समय ऐसा घोषित किया जा सकता है। वर्तमान मामले में 'पत्नी' ने ज़िला अदालत, पुणे में विशेष शादी अधिनियम, 1954 की धारा 25 के तहत अर्ज़ी डाली थी कि उसकी शादी को इस आधार पर टूटा हुआ घोषित किया जाए कि उसके पति ने सक्षम अदालत से तलाक़ का आदेश लिए बिना उससे शादी की थी और शादी के समय उसकी पत्नी जीवित थे और उसने अपनी पहली शादी के बारे में उससे झूठ बोला था। निचली अदालत ने उसकी अर्ज़ी यह कहते हुए खारिज कर दी कि विशेष शादी अधिनयम, 1954 ई धारा 25 के तहत यह शादी को टूटा घोषित करने के लिए काफ़ी नहीं है। कोर्ट ने कहा कि उत्पीड़न या धोखाधड़ी के सामने आने के एक साल के भीतर दायर की जानी चाहिए। बॉम्बे हाईकोर्ट ने उसकी अपील ख़ारिज कर दी और निचली अदालत के फ़ैसले को सही ठहराया जिस

पैतृक कृषि भूमि किसी बाहरी व्यक्ति को नहीं बेची जा सकती है : सुप्रीम कोर्ट

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बाप-दादाओं की खेती की जमीन किसी बाहरी को नहीं बेची जा सकती : सुप्रीम कोर्ट  सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि पैतृक कृषि भूमि बाहरी व्यक्ति को नहीं बेची जा सकती है. इस मामले में सवाल था कि क्या कृषि भूमि भी धारा 22 के प्रावधानों के दायरे में आती है.  सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक जो व्यवस्था दी है हिन्दू उत्तराधिकारी पैतृक कृषि भूमि का अपना हिस्सा बेचना चाहता है, तो उसे घर के व्यक्ति को ही प्राथमिकता देनी होगी. वह संपत्ति बाहरी व्यक्ति को नहीं बेच सकता. जस्टिस यूयू ललित व एमआर शाह की पीठ ने यह फैसला हिमाचल प्रदेश के एक मामले में दिया है. दरअसल सवाल यह था कि क्या कृषि भूमि भी धारा 22 के प्रावधानों के दायरे में आती है या फिर नहीं आती है. क्या है धारा 22 में प्रावधान: सबसे पहले आपको बताते है कि आखिर धारा 22 में प्रावधान क्या है. जब बिना वसीयत के किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसकी संपत्ति उत्तराधिकारियों के नाम पर आ जाती है. अगर उत्तराधिकारी अपना हिस्सा बेचना चाहता है तो उसे अपने बचे हुए उत्तराधिकारी को प्राथमिकता देनी होगी. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि कृषि भूमि भी धारा

आपराधिक मामले को छिपाने पर रद्द अधिवक्ता पंजीकरण की बहाली नहीं हो सकती :सुप्रीम कोर्ट

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आपराधिक मामले के बारे में तथ्यों को छिपाने के कारण पंजीकरण से हाथ धोने वाले वक़ील को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं ।सुप्रीम कोर्ट ने उस वक़ील की याचिका ख़ारिज कर दी है जिसका पंजीकरण इस आधार पर रद्द कर दिया गया था कि उसने एक आपराधिक मामले से जुड़े तथ्यों को छिपाया था। आनंद कुमार शर्मा को हिमाचल प्रदेश के बार काउन्सिल में जुलाई 1988 में एडवोकेट के रूप में पंजीकरण मिला। पर उनका पंजीकरण बाद में इस आधार पर रद्द कर दिया गया कि एक तो वे हिमाचल प्रदेश सरकार की सेवा में थे और दूसरा यह कि वे एक आपराधिक मामले में भी फँसे थे। यद्यपि शर्मा हिमाचल बार काउन्सिल में पंजीकृत थे, पर बाद में बीसीआई ने उनका पंजीकरण राजस्थान में ट्रान्स्फ़र कर दिया। पर बाद में बीसीआई ने 1995 में उपरोक्त आधार पर उनका पंजीकरण रद्द कर दिया। बीसीआई के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने भी सही माना। इसके बाद शर्मा ने दुबारा पंजीकरण के लिए आवेदन दिया। उनकी अपील पर राजस्थान हाईकोर्ट ने राजस्थान बार काउन्सिल को विचार करने को कहा पर बार काउन्सिल ने उसके आवेदन को रद्द कर दिया और बीसीआई ने भी उसके इस फ़ैसले को सही ठहराया। यह बात है वर्ष 20

एससी-एसटी संशोधित अधिनियम कोर्ट के अधिकारों को सिर्फ़ उन मामलों में ज़मानत देने तक सीमित नहीं करता है जहाँ किसी भी तरह का अपराध नहीं हुआ है : हाईकोर्ट

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 एससी/एसटी संशोधित अधिनियम कोर्ट के अधिकार को सिर्फ़ उन मामलों में ज़मानत देने तक सीमित नहीं करता जहाँ किसी भी तरह का अपराध नहीं हुआ है : कलकत्ता हाईकोर्ट कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक पत्रकार को अग्रिम ज़मानत दे दी है जिस पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 की धारा 3(1) (r) (u) के तहत मामला दर्ज किया गया है। न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बाग़ची और मनोजित मंडल ने कहा कि इस अधिनियम में धारा 18A को जोड़ने के बावजूद कोर्ट को इस बात की पड़ताल का अधिकार है कि एफआइआर में जिस तरह के आरोप लगाए गए हैं वे ठहरते हैं कि नहीं। यह एफआईआर एक बंगाली अख़बार के प्रकाशक के ख़िलाफ़ दर्ज किया गया है क्योंकि सबर समुदाय के लोगों ने उसमें प्रकाशित एक ख़बर "मृत्तु नोई सबरपल्लिर चिंता भात" (मौत नहीं, सबर समुदाय की चिंता भोजन है) को लेकर शिकायत दर्ज कराई है।  अचरज की बात यह है कि इस ख़बर में यह बताया गया था कि इस समुदाय को इलाज की सुविधा नहीं है, उन्हें बुनियादी सुविधाएँ जैसे पानी, आवास, जॉब कार्ड और वोटर कार्ड आदि भी नहीं है। ख़बर में आरोप लगाया गया कि प्रशासन द्वारा उनको सुविधाएँ

आम लोगों का मंदिर के प्रतिदिन के दर्शन पूजन या समारोहों में भाग लेना मंदिर के निजी /सार्वजनिक होने के लिए महत्वपूर्ण है : सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आम लोगों का मंदिर के दर्शन और प्रतिदिन की पूजा या समारोहों में भाग लेना मंदिर के निजी/सार्वजनिक चरित्र के निर्धारण के लिए महत्त्वपूर्ण है।  इस संबंध में इंदौर के एक राम मंदिर के पुजारी ने एक मामला दायर कर यह घोषित किए जाने की माँग की कि मंदिर निजी है और राज्य को इस मंदिर के प्रबंधन, पूजा अर्चना और कृषि भूमि पर क़ब्ज़े का कोई अधिकार नहीं है। मामले में राज्य सरकार के अधिकारियों के ख़िलाफ़ हुक्मनामा भी जारी करने का आग्रह किया गया। यद्यपि मिचलि अदालत ने इस मामले में अपना फ़ैसला सुना दिया था पर प्रथम अपीली अदालत ने इसे निरस्त कर दिया। हाईकोर्ट ने भी प्रथम अपीली अदालत के फ़ैसले को सही ठहराया और कहा कि विवादित भूमि भगवान के नाम पर है और राम दास और बजरंग दास के नाम पुजारी के रूप में हैं और पुजारियों के नाम बदलते रहे हैं और ये पुजारी किसी एक परिवार के नहीं हैं और इनके बीच कोई ख़ून का रिश्ता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि उन्होंने इस बाबत कोई सबूत नहीं दिया है कि इस मंदिर को किसने बनवाया और उसने इसके लिए पैसे कहाँ से जमा किए। कोर्ट ने यह भी कहा कि रजिस्टर मे

अस्पताल के ग़लत इलाज को लापरवाही नहीं माना जाता सकता है : सुप्रीम कोर्ट

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ग़लत इलाज को लापरवाही नहीं माना जा सकता : सुप्रीम कोर्ट . सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण मंच (NCDRC) के फ़ैसले के ख़िलाफ़ दायर एक अपील को ख़ारिज कर दिया। इस अपील में कहा गया था कि अस्पताल के ग़लत इलाज के कारण उसकी पत्नी की मौत हो गई। हमें अपीलकर्ता के प्रति जो हुआ उसका दुःख है पर इस भावना को क़ानूनी उपचार में नहीं बदला जा सकता, यह कहना था न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल का जिन्होंने NCDRC के फ़ैसले को सही माना जिसमें कहा गया था कि यह मामला ज़्यादा से ज़्यादा ग़लत इलाज का हो सकता है; यह निश्चित रूप से इलाज में लापरवाही का नहीं हो सकता'। अपनी शिकायत में इस व्यक्ति ने आरोप लगाया था कि अस्पताल ने निम्नलिखित क़दम उठाए जिसे इलाज में लापरवाही माना जा सकता है (a) अनुचित और अप्रभावी दवा देना; (b) आईवी (IV) इलाज के लिए कन्नुला को दुबारा शुरू करने में विफल रहना; (c) मृतक को समय से पहले ही अस्पताल से छुट्टी दे देना जबकि रोगी को आईसीयू में रखे जाने की ज़रूरत थी; (d) पोलीपोड एंटीबायोटिक को मुँह से खिलाना जबकि वह इस हालत में नहीं थी और उसे