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नवंबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आंगनबाड़ी सेविका के पद पर चयन के लिए पात्रता पर विचार के लिए विवाहित और अविवाहित बेटी के बीच कोई अंतर नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को कहा  कि बिहार में आंगनबाड़ी सेविका (Anganwadi Worker) के पद पर चयन के लिए दिशानिर्देशों के अनुसार पात्रता पर विचार के लिए विवाहित और  अविवाहित बेटी के बीच कोई अंतर नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को कहा कि बिहार में आंगनबाड़ी सेविका (Anganwadi Worker) के पद पर चयन के लिए दिशानिर्देशों के अनुसार पात्रता पर विचार के लिए विवाहित और अविवाहित बेटी के बीच कोई अंतर नहीं किया जा सकता. न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की पीठ ने मुजफ्फरपुर जिले के ब्लॉक मुरौल में पंचायत केंद्र में आंगनबाड़ी सेविका की नियुक्ति के मुद्दे पर विचार करते हुए ये बात कही. पीठ ने कहा कि दिशानिर्देशों के अनुसार पात्रता पर विचार करने के उद्देश्य से विवाहित बेटी और अविवाहित बेटी के बीच कोई भेद नहीं किया जा सकता है. ग्रामीण इलाकों में ये काफी आम है कि पैतृक घर और मातृ गृह कभी-कभी एक ही गांव में हो सकते हैं. संबंधित मामले में 2006 में मुखिया/पंचायत सचिव, ग्राम पंचायत मीरापुर (कुमरपाकर) पंचायत द्वारा एक विज्ञापन जारी कर

यौन शौषण का दोषी बरी , नाबालिग की गवाही पर विश्वास नहीं : बॉम्बे हाईकोर्ट

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यौन शौषण का दोषी बरी , नाबालिग की गवाही पर विश्वास नहीं : बॉम्बे हाईकोर्ट
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बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश

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सुप्रीम कोर्ट

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हाईकोर्ट

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सिर्फ संदेह पर आपराधिक केस चलाना गलत : सुप्रीम कोर्ट 01/11/2021   समन जारी करने के आदेश को रद्द किया शीर्ष अदालत ने डायले डिसूजा की ओर से मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने मामला रद्द करने की डिसूजा की याचिका खारिज कर दी थी। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि इसलिए उपरोक्त कारणों के आधार पर हम वर्तमान अपील की अनुमति देते हैं। हम समन जारी करने के आदेश और वर्तमान याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही को रद्द करते हैं। नई दिल्ली  |  एजेंसी उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि केवल संदेह के आधार पर आपराधिक कानून लागू नहीं किया जाना चाहिए। ऐसे मामलों में गहन जांच जरूरी है। अन्यथा निर्दोष व्यक्ति को मुकदमे का सामना करना पड़ सकता है। अदालत ने एक कंपनी के निदेशक के खिलाफ दर्ज मामले में यह टिप्पणी की। न्यायमूर्ति आरएस रेड्डी व न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि जब अपराध सहमति या मिलीभगत से होता है अथवा कंपनी के निदेशक, प्रबंधक या अन्य अफसर की उपेक्षा के कारण होता है तो प्रतिनिधिक दायित्व बनता है। प्रतिनिधिक दायित्व कर्मचारी के कार्यों के प
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उपहार कांड में आया निर्णय

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न्यायालय

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पद्म पुरस्कार 2021

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अखिल भारतीय न्यायिक सेवा समय वह परिस्थितियों की आवश्यकता

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न्याय

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किसी भी व्यक्ति को नौकरीशुदा पत्नी को बिना किसी भावनात्मक संबंधों के एक कमाऊ गाय (Cash Cow)) के रूप में इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी जा सकती :दिल्ली हाईकोर्ट

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किसी भी व्यक्ति को नौकरीशुदा पत्नी को बिना किसी भावनात्मक संबंधों के एक कमाऊ गाय (Cash Cow)) के रूप में इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी जा सकती :दिल्ली हाईकोर्ट दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए साफ तौर पर कहा कि किसी भी व्यक्ति को नौकरीशुदा पत्नी को बिना किसी भावनात्मक संबंधों के एक कमाऊ गाय (Cash Cow)) के रूप में इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी जा सकती. इस दौरान कोर्ट ने महिला की अपील को स्वीकार करते हुए पति के व्यवहार को क्रूरता मानते हुए उनके बीच तलाक (Divorce) की मंजूरी प्रदान कर दी है. दरअसल, जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह की पीठ के सामने महिला ने फैमिली कोर्ट (Family Court) के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें फैमिली कोर्ट ने इसे क्रूरता या परित्याग का कारण मानने से इनकार करते हुए तलाक मंजूर नहीं किया था. इस जोड़े के बीच साल 2000 में विवाह संपन्न हुआ था, जब पत्नी नाबालिग थी और 13 साल की थी. वहीं पति की आयु 19 साल थी. पत्नी की नौकरी के बाद पति घर ले जाने को हो गया तैयार बता दें कि साल 2005 में वयस्क होने के बाद भी पत्नी नवंबर 2014

एक वसीयत को किसी समझौते के जरिए रद्द नहीं किया जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि एक वसीयत को किसी समझौते के जरिए रद्द नहीं किया जा सकता है। इसे केवल भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-70 के तहत निर्दिष्ट तरीकों के अनुसार ही रद्द किया जा सकता है। न्यायाधीश अजय रस्तोगी और अभय एस ओका की पीठ ने कहा है कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-70 के तहत उन आवश्यक अवयवों को स्पष्ट किया गया है जो वसीयत को रद्द करने के लिए जरूरी हैं। अदालत ने जिस मामले में यह टिप्पणी की उसमें मांगीलाल नामक एक शख्स ने छह मई 2009 को एक वसीयतनामा किया था। इसमें उसने अपनी जमीन का एक निश्चित हिस्सा अपनी बेटी रामकन्या और जमीन का कुछ हिस्सा अपने भाई के बेटों- सुरेश, प्रकाश और दिलीप के नाम किया था। इसके बाद सुरेश और रामकन्या ने 12 मई 2009 को आपस में एक समझौता किया, जिसके तहत उन्होंने जमीन का आपस में बंटवारा कर लिया। रामकन्या ने फरवरी 2011 को एक सेल डीड (बिक्री विलेख) तैयार किया जिसमें उन्होंने अपनी जमीन का हिस्सा बद्रीलाल को बेच दिया। वर्तमान मामले में बद्रीनाथ अपीलकर्ता हैं। ट्रायल जज ने माना था कि सुरेश और रामकन्या के बीच समझौता अवैध था और रामकन्या

किसी डेटिंग साइट पर एक्टिव होने भर से किसी के चरित्र का आंकलन नहीं किया जा सकता इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फैसला

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प्रयागराज : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि किसी डेटिंग साइट पर एक्टिव होने भर से किसी के चरित्र का आंकलन नहीं किया जा सकता। प्रयागराज : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि किसी डेटिंग साइट पर एक्टिव होने भर से किसी के चरित्र का आंकलन नहीं किया जा सकता। रेप के आरोपी ने अपनी अग्रिम जमानत के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। आरोपी ने दलील दी थी कि डेटिंग साइट के जरिए संपर्क में आने के चौथे दिन ही लड़की उससे मिलने पहुंच गई, ऐसे में उसकी नैतिकता संदेहास्पद है और इसे सहमति का शारीरिक संबंध माना जाना चाहिए। कोर्ट ने आरोपी को अग्रिम जमानत देने से इंकार किया टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने आरोपी की इस दलील को खारिज करते हुए उसे अग्रिम जमानत देने से इंकार कर दिया। पीड़ित लड़की का आरोप है कि डेटिंग साइट के जरिए संपर्क में आने के बाद आरोपी ने उससे शादी का झूठा वादा किया फिर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। डेटिंग साइट पर हुई थी पीड़ित-आरोपी की मुलाकात इस मामले में पीड़ित लड़की और आरोपी की मुलाकात एक डेटिंग साइट पर हुई थी। संपर्क में आने क
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