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आपराधिक शिकायत को सिर्फ़ इसलिए निरस्त नहीं किया जा सकता है क्योंकि शिकायत दीवानी प्रकृति का लगता है : सुप्रीम कोर्ट

आपराधिक शिकायत को सिर्फ़ इसलिए निरस्त नहीं किया जा सकता क्योंकि शिकायत दीवानी प्रकृति का लगता है : सुप्रीम कोर्ट  सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक शिकायतों को सिर्फ़ इसलिए नहीं निरस्त किया जा सकता कि क्योंकि यह शिकायत दीवानी प्रकृति का लगता है। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने कहा कि अगर शिकायत में आरोपी के ख़िलाफ़ प्रथम दृष्ट्या अपराध दिखती है तो आपराधिक प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई जाएगी। अपनी शिकायत में शिकायतकर्ता ने एक भवन निर्माता पर फ़र्जीवाड़े का आरोप लगाया और फ़र्ज़ी आधार पर दस्तावेज़ बनाकर उसके आधार पर क़रार का आरोप लगाया। मजिस्ट्रेट ने इस शिकायत की जाँच करवाई। पुलिस ने रिपोर्ट पेश की और कहा कि यह शिकायत दीवानी प्रकृति का लगता है। निचली अदालत ने आरोपी को सम्मन जारी किया। बाद में हाईकोर्ट ने सम्मन को निरस्त कर दिया और कहा कि यह मामला दीवानी प्रकृति का है और अगर आरोपी के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला चलता है तो यह क़ानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस Kamal Shivaji Pokarnekar vs. State of Maharashtra में दायर अपील में कहा

अगर पत्नी अपने पति के रिश्तेदारों के व्यवहार से ख़ुश नहीं है तो उसका अलग रहना और गुज़ारा भत्ता माॅगना जायज :बॉम्बे हाईकोर्ट

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अगर पत्नी अपने पति के रिश्तेदारों के व्यवहार से ख़ुश नहीं है तो उसका अलग रहना और गुज़ारा ख़र्च माँगना जायज़ : बॉम्बे हाईकोर्ट   बॉम्बे हाईकोर्ट  ने कहा है कि अगर पत्नी पति के मां-बाप के व्यवहार से ख़ुश नहीं है और उनके साथ रहने में असुविधा महसूस कर रही है तो उसका अलग रहना और इस पर आने वाले ख़र्च की माँग करना जायज़ है। न्यायमूर्ति वीके जाधव ने एक पति की उस याचिका को ख़ारिज कर दिया जिसमें उसने फ़ैमिली कोर्ट के फ़ैसले को चुनौती दी थी। फ़ैमिली कोर्ट ने उसकी शादी के अधिकारों की बहाली की माँग संबंधी याचिका ख़ारिज कर दी थी और उसको अपनी पत्नी को गुज़ारा भत्ता देने का आदेश दिया था। पति के वक़ील ने हाईकोर्ट में कहा कि इस मामले में पति-पत्नी के बीच संबंध मधुर हैं और इसलिए पत्नी के घर से अलग रहने और गुज़ारा भत्ते के माँग का कोई कारण नहीं है। उसने यह भी कहा कि पति अपने बूढ़े माँ-बाप को छोड़कर घर से दूर नहीं रह सकता। कोर्ट ने पत्नी की दलील पर भी ग़ौर किया जिसने कहा कि उसे अपने पति से कोई शिकायत नहीं है पर उसके रिश्तेदार उसे परेशान कर रहे हैं। इन दलीलों पर ग़ौर करते हुए न्यायमूर्ति जाधव ने कहा कि

ग्राहक की बिना मंजूरी खाते से रकम निकली तो बैंक होंगे जिम्मेदार : हाईकोर्ट

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ग्राहक की बिना मंजूरी खाते से रकम निकली तो बैंक होगें जिम्मेदार : हाईकोर्ट 

खुलासा: सिविल सर्विसेज परीक्षा में हिंदी मिडियम अभ्यर्थी बेहाल, केवल 8 अभ्यर्थी पास

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खुलासा :सिविल सर्विसेज परीक्षा में हिंदी मिडियम अभ्यर्थी बेहाल, केवल 8 अभ्यर्थी पास 

लेटर पैड कॉलेजों से कानून की फर्जी डिग्री ख़रीदने वालों पर रोक लगाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बीसीआई को जारी किया नोटिस

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 फर्जी लाॅ डिग्री धारक वकीलों को वकालत के पेशे से निकाले जाने की माँग याचिका में की गई   सुप्रीम कोर्ट ने लेटर पैड कॉलेजों द्वारा बेची जाने वाली क़ानून की डिग्री पर रोक लगाने की एक याचिका पर बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया (BCI)को नोटिस जारी किया है। याचिका में इस मुद्दे की जाँच की माँग की गई है जो कि क़ानूनी पेशे की पवित्रता को समाप्त कर रहा है। न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर की पीठ ने एम वसंत राजा की याचिका पर BCI को नोटिस जारी किया। अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण ने राजा की ओर से इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ के समक्ष अपना पक्ष रखा। इस याचिका में याचिकाकर्ता ने इस 'घोटाले' की जाँच की माँग की है। याचिका 20 नवंबर 2018 को दायर की गई थी। राजा ने अपनी याचिका में इस तरह के फ़र्ज़ी डिग्रीधारी लोगों को पेशे से निकाले जाने की माँग की गई है जो कि क़ानूनी पेशे की पवित्रता को नष्ट कर रहे हैं। इस याचिका में इस तरह के ग़ैरक़ानूनी तत्वों को भविष्य में प्रवेश करने से रोकने के लिए तत्काल क़दम उठाने की माँग की गई है। याचिकाकर्ता ने लेटर पैड से चलने वाले विधि कॉलेजों द्वारा &

राजस्व रिकॉर्ड में नाम बदलवाने से भूमि पर क़ब्ज़े का अधिकार नहीं बन जाता और इसका कोई आनुमानिक महत्व भी नहीं : सुप्रीम कोर्ट

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राजस्व रिकॉर्ड में अवैध रूप से नाम बदलवाने से भूमि पर क़ब्ज़े का अधिकार नहीं बन जाता और इसका कोई आनुमानिक महत्व भी नहीं है : सुप्रीम कोर्ट   सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी ज़मीन के राजस्व रेकार्ड में नाम बदलवाने से उस व्यक्ति का उस ज़मीन पर क़ब्ज़ा नहीं हो जाता है और जिस व्यक्ति की ज़मीन है उसका अधिकार ख़त्म नहीं हो जाता है और न ही इसका कोई आनुमानिक (presumptive) महत्व भी नहीं है। सिर्फ़ इतना होता है कि जिस व्यक्ति का नाम राजस्व रेकर्ड में डाला गया है वह राजस्व का भुगतान कर सकता है।   न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फ़ैसले के ख़िलाफ़ दायर अपील पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। हाईकोर्ट का यह आदेश विवादित भूमि के राजस्व रेकर्ड के बारे में उत्पन्न विवाद से संबंधित है।   "किसी भी भूमि के राजस्व रेकॉर्ड में बदलाव के बारे में उसकी क़ानूनी स्थिति में क्या परिवर्तन आता है और इससे ज़मीन पर अधिकार को लेकर क्या बदलाव आता है इस बारे में क़ानून बिलकुल स्पष्ट है और इस बारे में बहुत सारे फ़ैसले आ चुके हैं।  "यह अदालत इस बात

किसी व्यक्ति पर बलात्कार का झूठा आरोप लगाना आरोपी को उत्पीड़ित और अपमानित करने के समान : हाईकोर्ट

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 किसी पर बलात्कार का झूठा आरोप लगाना आरोपी को उत्पीड़ित और अपमानित करने के बराबर : बॉम्बे हाईकोर्ट  बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में 45 साल के एक व्यक्ति को बलात्कार के आरोपों से मुक्त कर दिया। न्यायमूर्ति एएम बादर ने बलात्कार के झूठे आरोपों के बारे में कहा, "…अगर महिला अभियोजक वयस्क है और सारी बातों को समझती है, तो अदालत को यह समझने की ज़रूरत है कि साक्ष्य विश्वसनीय हैं कि नहीं। बलात्कार के मामले में, अपराध के हर पक्ष के बारे में आरोपी का अपराध साबित करने की ज़िम्मेदारी अभियोजक की है।यह ज़िम्मेदारी कभी भी आरोपी के मत्थे नहीं मढ़ा जा सकता। इस स्थिति में, यह आरोपी का दायित्व नहीं है कि उसे कैसे और किस तरह से मामले में झूठा फँसाया गया है। बलात्कार का अपराध पीडिता को उत्पीड़ित और उसको अपमानित करता है और इसी तरह बलात्कार का झूठा आरोप इसी तरह से आरोपी को उत्पीड़ित और अपमानित करता है।" सतारा के एक व्यक्ति ने आईपीसी की धारा 376 और 506 के तहत सज़ा दिए जाने को चुनौती दी थी। अपीलकर्ता पर अगस्त 2008 में यह मामला उस समय चला जब मार्केटिंग पेशे की एक महिला ने उसके ख़िलाफ़ पुलिस में शिकाय

संपत्ति पर कब्जा करने वाला उसका मालिक नहीं हो सकता : सुप्रीम कोर्ट

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संपत्ति पर अवैध कब्जा करने वाला व्यक्ति उसका मालिक नहीं हो सकता : सुप्रीम कोर्ट  संपत्ति पर कब्जा करने वाला उसका मालिक नहीं हो सकता: सुप्रीम कोर्ट  सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में व्यवस्था दी है कि किसी संपत्ति पर अस्थायी कब्जे करने वाला व्यक्ति उस संपत्ति का मालिक नहीं हो सकता। साथ ही टाइटलधारी भूस्वामी ऐसे व्यक्ति को बलपूर्वक कब्जे से बेदखल कर सकता है, चाहे उसे कब्जा किए 12 साल से अधिक का समय हो गया हो।  शीर्ष कोर्ट ने कहा कि ऐसे कब्जेदार को हटाने के लिए कोर्ट की कार्यवाही की जरूरत भी नहीं है। कोर्ट कार्यवाही की जरूरत तभी पड़ती है जब बिना टाइटल वाले कब्जेधारी के पास संपत्ति पर प्रभावी/ सेटल्ड कब्जा हो जो उसे इस कब्जे की इस तरह से सुरक्षा करने का अधिकार देता है जैसे कि वह सचमुच मालिक हो। जस्टिस एनवी रमणा और एमएम शांतनागौडर की पीठ ने फैसले में कहा कि कोई व्यक्ति जब कब्जे  की बात करता है तो उसे संपत्ति पर कब्जा टाइटल दिखाना होगा और सिद्ध करना होगा कि उसका संपत्ति पर प्रभावी कब्जा है। लेकिन अस्थायी कब्जा (कभी छोड़ देना कभी कब्जा कर लेना या दूर से अपने कब्जे में रखना) ऐसे व्यक्ति को व